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( १३२ ) "सुनिषण्ये हिमो पाही मोह-बोषत्रयापहः । अविवाही लघु स्वादुः कषायो लक्षदीपनः ।।
वृष्यो रच्यो ज्वर-वास-मोह-कुष्ठ-भ्रमप्रणुत् ॥ (भावप्रकाश) अर्थ-सुनिषण्णक ठण्डा, दस्त रोकने वाला, मोह तथा त्रिदोष का नाशक, दाह को शांत करने वाला, हल्का स्वादिष्ट, कषायरसवाला, रूक्ष, अग्नि को बढ़ाने वाला बलकारक, रुचिकर, और ज्वर, श्वास, कुष्ठ तथा भम का नाशक है।
२-कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी कुक्कुट शब्द का प्रयोग बनस्पति के भयं में हुआ है। देखिये"कुक्कुट-कोशातको-शातावरीमूलयुक्तमाहारयमाणो मासेन
गौरो भवति ।" (कौटिलीय अर्थशास्त्र पृ० ४१५) अर्थ-कुक्कुट (विषण्णक-चौपनिया भाजी), कोशातकी (तुरई), शतावरी इन के मूलों के साथ महीना भर भोजन करने वाला मनुष्य गौर वर्ण हो जाता है।
३-फुक्कुटः-शाल्मली वृक्षे (सेमल का वृक्ष) (वैद्यक शब्दसिंधु) । ४-कुक्कुट.-बीजपूरक: (बिजोरा) (भगवतीसूत्र टीका) ।
५-कक्कुट - (१) कोषण्डे, (२) कुरडु, (३) सांवरी (निघण्टु रत्नाकर)।
६-कुक्कुट -घास का उल्का, आग की चिंगारी, शूद्र और निषादन की वर्णसस्कार प्रजा (जै० स० प्र० ऋ० ४३)
७-कुक्कुटी-कुक्कुटो, पूरणी, रक्तकुसुमा, घृणवल्लभी। पूरणी बनस्पति (हेमो निघष्टुसग्रह)
८--कुक्कुटी-मधुकुक्कुटी (स्त्री) मातुलुंगवृक्षे जम्बोरभेदे अर्थात्बीजोरे वृक्ष मे से जम्बीर फल (वैद्यक शब्दसिंधु टीका) (राज