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________________ को संसार के समक्ष अयथार्य रूप से प्रकट कर जो चर्चा उपस्थित की है उसका आज तक अन्त नहीं आया। यद्यपि अध्यापक कौशाम्बी पाली भाषा तथा बौद्ध साहित्य के प्रखर विद्वान माने जाते थे परन्तु अर्द्ध मागधी भाषा के तथा जैन आचार-विचार के पूर्णज्ञाता न होने के कारण एव गोपालदास भाई पटेल भी इन विषयों मे अनभिज्ञ होने के कारण (दोनों ने) जैनागमो के कथित सूत्रपाठों का गलत अर्थ लगाकर निग्गठ नायपुत्त श्रमण भगवान् महावीर तथा उनके अन्यायी निग्रंथ श्रमण संघ पर प्राण्यग मत्स्य मासाहार का निर्मूल आक्षेप लगाया है । वास्तव मे बात यह है कि जो भी कोई अहिसा धर्म के अनन्य सस्थापक, प्रचारक, विश्ववत्सल, जगद्-बन्धु, दीर्घ तपस्वी, महाश्रमण भगवान् महावीर पर मासाहार का दोषारोपण करता है, वह भगवान् महावीर को यथायोग्य नहीं समझ सका, उनके वास्तविक पवित्र जीवन को नहीं समझ पाया । यही कारण है कि ऐसे व्यक्ति ऐसा अप्रशस्त दुस्साहस कर ज्ञात-अज्ञात भाव से मासाहार प्रचार का निमित्त बन जाते हैं। ऐसे निर्मूल आक्षेप का प्रतिवाद करना सत्य तथा अहिमा के प्रेमियो के लिये अनिवार्य हो जाता है । इसी बात को लक्ष्य में रखते हुए कई विद्वानों ने इस प्रतिवाद रूप कुछ लेख तथा पुस्तिकाये लिखकर प्रकाशित की। फिर भी, जिज्ञासुओ के लिये इस विषय मे विशेष रूप से खोजपूर्ण लेख की आवश्यकता प्रतीत हो रही थी। अतः भारत के अनेक स्थानो से मित्रो तथा विद्यार्थी बन्धुओ ने अपने पत्रों द्वारा तथा साक्षात् रूप मे मिलकर मुझे इस "भगवान् बुद्ध" के मांसाहार प्रकरण के प्रतिवाद रूप शोध-खोजपूर्ण, युक्ति पुरस्सर, जैनशास्त्र-सम्मत तथा जैन आचार-विचार के अनुकूल निबध लिखने की आग्रहभरी पुन -पुनः प्रेरणाये की । इन निरन्तर की प्रेरणाओ ने मेरे मन मे सुषुप्त इच्छाओं को बल प्रदान किया। विशेष रूप से श्री रमेशचन्द्रजी दूगड़ जैन (पश्चिम पाकिस्तान से आये हुए) कानपुर निवासी ने इस विषय पर कुछ नोट लिख भेजे और भावना प्रकट की कि इस विषय पर एक सुन्दर निवन्ध तैयार किया जावे
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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