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९- कापती -- कृष्ण कापीती, स्वेत कापोती वनस्पतियाँ (भुत सं०) कृष्ण कापोती तथा श्वेत कापोती शब्दों से पाठक काही या श्वेत कबूतरी ही समझेंगे । परन्तु वास्तव में ये शब्द किस अर्थ के बोधक हैं, इसका खुलासा नीचे दिया जाता है :
" इवेतकापोती समूलपत्रा भक्षयितव्या ( सुश्रुत संहिता) | समीरां रोमशां मृहीं रसेनेक्षुरसोपमाम् । एवंरूपरसां चापि कृष्णां कापोतीमाविशेत् ॥ कौशिकों सरितं ती संजयास्तु पूर्वतः । क्षितिप्रवेशो वाल्मिकेराचितो योजनत्रयम् ॥ विशेमा तत्र कापोती श्वेता वाल्मिकमूर्धसु ॥
(कापोती प्राप्तिस्थान- सुबूत सं०) उपर्युक्त शब्दों से स्पष्ट है कि कपोत तथा कपोत से बने हुए शब्द अनेक प्रकार की वनस्पतियों तथा अन्य पदार्थों के बोधक हैं। कपोत के रंग जैसा हरा मुग्मा होने से इसका नाम कपोतांजन कहलाता है । छोटी इलायची का रंग कपोत के सदृश होने से कपोतवर्णा कहलाती है । इसी प्रकार पेठे का रंग भी कबूतर के समान ऊपर से हरा होने से कपोत कहलाता है । अकेले कपोत शब्द के ये अर्थ लिख चुके हैं :(१) कपोत
पारापत (एक प्रकार की वनस्पति ) ( २ ) पारीस पीपर, (३) पेठा ( कुष्माड ), (४) कबूतर पक्षी ।
इनके गुण-दोपों का वर्णन वैद्यक ग्रन्थों में इस प्रकार है
-पारापत
"पारापतं सुमधुरं रुच्यमत्यग्निवातनुत्" (सुश्रुत संहिता) २-- पारीस पीर :
१.
" पारिशो दुर्जरः स्निग्ध कृमिशुक्र कफप्रदः ॥५॥" फलेऽम्लो मधुरो मूलो, कषायः स्वादु मज्जकः ||६||
(भावप्रकाश वटादिवर्ग )
कुष्माण्ड फल, कोला, सफेद कुम्हेड़ा, पेठा :