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________________ ( १२२ ) विद्वत्ता के लिए शोभाप्रद नही है किन्तु विद्वत्ता को दूषित करने वाला ___अब हम यहाँ पर 'विवादास्पद' सूत्रपाठ के वास्तविक अर्थ के लिये विचार कर। ९--भगवतीसूत्र का (विचारणीय) मूल पाठ इस प्रकार है :-- 'तत्य गं रेवतीए गाहावइणीए मम अाए दुवे कवोय-सरोरा उववखडिया तेहि नो अहो । अत्यि से अन्ने पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए तमाहराहि । एएणं अट्ठो। (भगवतीसूत्र, शतक १५) समर्थ शास्त्रज्ञ नवागीटीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि द्वारा की गयी इस सूत्रपाठ की टाका तथा इस का अर्थ इसी स्तम्भ ११ के विभाग क-ख अंगों में विस्तृत लिख आये है; तथा इस अर्थ की पुष्टि मे अंग ग-घ-ङ मे उनके समकालीन तथा निकट भविष्य में हो गये तीन आचार्यों के उद्धरण भी दे आये है । अब यहा पर इस पाठ के विवादास्पद शब्दों के वास्तविक अर्थ सप्रमाण लिखगे। इन शब्दो के इस स्थान पर सस्कृत अथवा अर्धमागधी शब्दकोश के प्रचलित अर्थ लेना उचित नही, क्योकि यहाँ तो वे औषध के रूप में इस्तेमाल (उपयोग) किये गये है। अत : इनके अर्थ वैद्यकीय शब्दकोशों से लेने उचित है। यदि इन शब्दों के अर्थ बनस्पतिपरक मिल जावे और वे वनस्पतियों इस रोग के निदान के अनुकल हों तो अवश्य स्वीकार कर लेने चाहिये । सुज्ञ विद्वानो के लिये यही शोभाप्रद है। हम यह स्पष्ट कर आये हैं कि प्राणिअग-मास इस रोग का निदान कदापि नही हो सकता। वैद्यक शब्दकोश संस्कृत भाषा में उपलब्ध होने से नीचे लिखे विचारणीय शब्दों के संस्कृत पर्यायवाची शब्दों का जान लेना भी परमावश्यक है :
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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