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________________ ( १२१ ) अर्थात् -- (०) हे भगवन् ! बाप कुलत्या भव्य मानते हैं अथवा अभक्ष्य ? ( उ० ) हे सोमिल ! कुलत्था भक्ष्य भी है, अभक्ष्य भी है। ( प्र०) हे भगवन् ! किस हेतु से भक्ष्य है ? किस हेतु से अभक्ष्य है ? ( उ० ) सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मण शास्त्रों में कुलत्या दो प्रकार का कहा है - स्त्री कुलस्था (स्त्री) और धान्यकुलत्था ( कुलथी) । इसमें जो स्त्रीकुलत्था है वह तीन प्रकार का है, वह इस प्रकार -- कुलकन्या, कुलवधू और कुलमाता | ये सब श्रमण निर्थयों के लिये अभक्ष्य हैं । इस में जो कुलची अनाज है, इस्थादि वक्तव्यता सरसों धान्य के समान जानना | इसलिये यह भक्ष्य भी है, अभक्ष्य भी है। यानी — अनि आदि से अचित्त, एषणीय, याचित, प्राप्त निर्दोष कुलथी अनाज ही श्रमण निग्रंथों को भक्ष्य है। बाकी अन्य सब कुलत्था अभक्ष्य हैं । सारांश यह है कि भगवतीसूत्र में निग्गंठ नायपुत्त ( श्रमण भगवान् महावीर ) ने -- "सरिमव, मास तथा कुलत्थ" इन तीनों शब्दों के अर्थ प्राणिवरक, द्रव्यपरक तथा वनस्पतिपरक भी बतलाये हैं । उनमें से उन्होंने स्पष्ट कहा है कि प्राणिपरक तथा द्रव्यपरक आदि पदार्थ तीर्थंकरों तथा निग्रंथ श्रमणों एवं श्रमणीयों के लिये सर्वथा अभक्ष्य हैं । वनस्पतिपरक पदार्थों मे से भी जो वनस्पतियाँ अनि आदि के प्रयोग से निर्जीव हैं और यदि वे निग्रंथ श्रमण के लिये तैयार न की गयी हों तो उसमे से आवश्यकता पड़ने पर निग्रंथ श्रमण को माँगने पर प्राप्त हो गया हो ऐसा निर्दोष आहार निर्ग्रथ श्रमण के लिये भक्ष्य है । अन्य सब प्रकार का आहार हमारे लिये अभक्ष्य है । इससे स्पष्ट है कि श्रमण भगवान महावीर तथा उनके निर्भय श्रमण विहार कदापि ग्रहण नहीं कर सकते । तथा यह भी स्पष्ट है कि क शब्द के अनेक अर्थ होते हैं; उन अर्थों में से जिस प्रसंग पर जो अर्थ उपयुक्त है वही अर्थ करना साक्षर व्यक्ति का करने मे ही उसकी विद्वत्ता की सच्ची कसोटी है। कर्तव्य है और ऐसा अनुचित अर्थ करना
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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