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( ११९ ) वह दो प्रकार की है : (१)याचित-~-मांगी हुई (२) अयाचित-नहीं मांगी हुई। इस में जो अयाचित सरसों है वह श्रमण निग्रंथों को अभक्ष्य है। जो याचित सरसों हैं वह भी दो प्रकार की है : (१) प्राप्त हुई और (२). न प्राप्त हुई। इस में जो नहीं मिली वह श्रमण निर्ग्रन्थों को अभक्ष्य है। जो सरसों श्रमण निग्रंथों को मिल गयी हो मात्र वह भक्ष्य है। हे सोमिल! इस लिए मैं कहता हूँ कि सरिसव भक्ष्य भी है, अभक्ष्य भी है।
(प्र०) मासा से भंते! कि भक्खया, अभक्खया ? (उ०) सोमिला! मासा भक्खया वि अभयलेया वि (प्र०) से केणछेणं जाव अभक्खया वि? (उ०) से नूर्ण ते सोमिला! बभन्नएसु नएसु विहा मासा पन्नत्ता,तं जहा-दव्वमासा यकालमासा य । तस्य गंजे ते कालमासा ते णं सावणादीया आसाढपज्जवसाणा दुवालसं पन्नत्ता, तं जहा-सावणे, भद्दवए, आसोए, कत्तिए, मग्गसिरे, पोसे, माहे, फग्गुमे, चित्ते, बइसाडे, जेवामूले, आसाढे, ते गं समणागं निग्गंयाणं अभक्खया। तत्थ गंजे ते दधमासा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-अत्यमासा य धन्नमासा य ।तत्य णं जे ते अत्यमासा ते बुविहा पन्नत्ता, तं जहा-सुवन्नमासा य रुप्पमासा य, ते णं समणाणं निग्गंयाणं अभक्खेया । तत्थ णं जे ते धन्नमासा ते विहा पन्नत्ता, तंजहासत्यपरिणया असत्थपरिणया य.एवं जहा बन्नसरसिवा जाव से तेणणं जाब अभक्खया वि।
__ अर्थात --(प्र०) हे भगवन ! 'मास' भक्ष्य है कि अभक्ष्य ? (उ०) हे सोमिल! मास भक्ष्य भी है, अभक्ष्य भी है। (प्र०) हे भगवन ! यह किस कारण से आप कहते हैं कि 'मास' भक्ष्य भी है, अभक्ष्य भी है ? (उ०) हे मोमिल! ब्राह्मण ग्रंथों में 'मास' दो प्रकार का कहा है, वह इस प्रकार--द्रव्य मास और काल मास । इन में जो काल मास है वह सावन से ले कर आषाढ़ तक बारह महीने हैं, वे इस प्रकारश्रावन भादों, आसोज, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पोष, माघ, फाल्गुण, चंत्र, वैसाख, जेठ, और आषाढ़, ये श्रमण निग्रंथों को अभक्ष्य हैं। इन में जो द्रव्य मास है-वह भी दो प्रकार का है, सो इस प्रकार-अर्थ मास और