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( ११८ )
तं जहा मित्त सरिसवाय पन्नसरिसवाय । तत्य णं जेते मित्तसरिसवाते. तिविहा पन्नता, तं जहा-सहमायया, सहवडियया, सहपंसुकोलियया, से पं. समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्य णं जे ते पन्नसरिसवा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सत्यपरिणया य असत्यपरिणया य, तत्य गंजेते असस्थपरिणया ते गं समणाणं निग्गंयाणं अभक्खया। तत्य गंजे ते सत्यपरिणया ते दुबिहा पन्नत्ता, त जहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य। तत्व में ते अणेसणिज्जा ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जेते एसणिजाते दुविहा पन्नता, तं जहा-जाइया य अजाइया य । तत्थ गंजे ते अजाइया ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया । तत्थ गं जे ते जाइया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-लद्धा य अलद्धा य । तत्य णं जे ते अलद्धा ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया । तत्थ ण जे ते लखा ते णं समणाणं निग्गंयाणं भक्खया, से तेणटणं सोमिला! एवं बुच्चइ-जाव अभक्खया
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___ अर्थात - (प्रश्न) हं भगवन ! सरिसव को आप भक्ष्य मानते हैं अथवा अभक्ष्य ? (उत्तर) हे सोमिल! सरिसव मुझे भक्ष्य भी है, अभक्ष्य भी है । (प्रश्न) हे भगवन ! इसका क्या कारण है ? (उत्तर) हे सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मग ग्रन्थों मे दो प्रकार का सरिसव कहा है, (१) मित्र सरिसव-समानवयस्क (२) और धान्य सरिसव । इस मे जो मित्र सरिसव है वह तीन प्रकार का है : (१) साथ जन्मा हुआ, (२) साथ में पला हुआ, और (३) साथ में खेला हुआ । ये तीनों प्रकार के सरिसवा (समानवयस्क) मित्र श्रमण निगंथों को अभक्ष्य हैं । जो धान्य सरिसव है, वह दो प्रकार का है । शस्त्रपरिणत और अशस्त्रपरिणत इस मे जो अशस्त्रपरिणत-अग्नि आदि शस्त्र से निर्जीव नही हुआ--वह श्रमण निग्रंथों को अभक्ष्य हैं। और जो शस्त्रपरिणत (अग्नि आदि से निर्जीव हुआ) है वह दो प्रकार का है : (१) षणीय-इच्छा करने योग्य, निर्दोष (२) अनेषणीय न इच्छा करने योग्य-सदोष । इस में जो अनेषणीय है वह श्रमण निग्रंथों को अभक्ष्य है। जो एषणीय सरसों है