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लज्जालु
पोपटा
स्त्री
छुई-मुई पौधा
free in ( मालवा )
हरा चना (गुजरात)
विभत्स अंग
आम्र फल
बकरी
भुट्टे (पंजाब)
उपर्युक्त विवरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका प्रयोग आज कल की चालू भाषा में भी प्राणियों तथा वनस्पतियों दोनों में होता है, एवं प्राणियों के अंगों तथा वनस्पतियों के बंगों के लिए भी ऐसा ही है। तथा यह भी स्पष्ट है कि एक शब्द का अर्थ :-- देश, काल और भाषा आदि की अपेक्षा से भी भिन्न-भिन्न हो जाता है । इस लिये सुज्ञ पुरुष वही है जो प्रसंग, परिस्थिति, देश, काल, भाषा एवं व्यक्ति के चरित्र आदि को समझ कर उसके अनुकूल अर्थ को स्वीकार करे ।
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चूत
छाल्ली
८-- श्रमण भगवान् महावीर और भक्ष्याभक्ष्य विचार
१
भगवती सूत्र शतक १८ उद्देशा १० में श्रमण भगवान् हवी. तथा सोमिल नामक ब्राह्मण का एक प्रसंग आता है। उस में वर्णन है कि एकदा भगवान वाणिज्य ग्राम में पधारे। वहाँ सोमिल नामक ब्राह्मण रहता था । वह धनाढ्य, अपरिभूत सामर्थ्यवान तथा ऋग्वेद आदि समस्त ब्राह्मण शास्त्रों का पारंगत विद्वान था । वह पांचसौ शिष्यों तथा बहुत बड़े कुटुम्ब का अधिपति था । एक दिन वह प्रभु महावीर के पास समवसरण में आया और उसने अनेक कूट प्रश्न पूछे। उन में कुछ प्रश्न भक्ष्याभक्ष्य सम्बन्धी भी पूछे, सो उसका विवरण इस प्रकार है।
[प्रश्न ] ' सरिसवा ते भंते ! कि भक्खया, अभक्खया ? [उत्तर] सोमिला ! सरिसचा [ मे] भक्वया वि अभक्त्वया वि । [प्र० ] से केणणं भंते ! एवं बुवइ - 'सरिसवा भक्लेया वि अमक्या वि ? [ उसर] से नूणं ते सोमिला! बभलए नएसु दुविहा सरिसवा पन्नता,
१. ' सरिसव' श्लिष्ट प्राकृत शब्द है। इसका एक अर्थ सर्षप ( रूसी) होता है और दूसरा अर्थ समानवयस्क मित्र होता है।