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( ११ ) विवादास्पद प्रकरण वाले पाठ में पाने वाले
शब्दों के वास्तविक अर्थ (१) मांस शम्न की उत्पत्ति का इतिहास
प्रारम्भ में मांस शब्द किसी भी पदार्थ के गर्भ अर्थात् भीतरी सार भाग के अर्थ में प्रयुक्त होता था । घोरे-घोरे यह शब्द मनुष्यादि प्राणधारियों के तृतीय धातु के अर्थ में तथा वनस्पति जनित फल मेवों आदि के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। ___ वैदिक धर्म के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ "ऋग्वेद् “में पशुयज्ञों का तथा रह्मणों के मार खाने का वर्णन नहीं है। 'दिक निघण्ट्र में मांस सन्द अथवा मांस का कोई अन्य नाम नहीं मिलता। परन्तु उस समय मांस था तो अवश्य । प्राचीन वेद तथा प्राचीन वैदिक कोश में इसका उल्लेख न होने का कारण यही है कि तत्कालीन ऋषि लोग प्राणी के अंग रूप मांस का किसी कार्य में इस्तेमाल नहीं करते थे। इस लिये उनको बनाई हुई वैदिक ऋचाओं मे मांस शब्द नहीं आता था और न ही उसे वैदिक निघण्ट में लिखने की आवश्यकता थी।
बाद में ऋग्वेद में कुछ सूक्त प्रक्षिप्त हुए, उन सूक्तों में मांस और ऋविष ये दो शब्द पाये जाने लगे। अथर्ववेदसंहिता में मांस शब्द के उपरान्त पिशित और ऋविष् शब्द मिलते हैं। यद्यपि वेद में आम शब्द कच्चे मांस को कहते हैं । परन्तु आचार्य यास्क के मत से वेद काल में आम शब्द सामान्य मांस में प्रयुक्त होता होगा । जैन और बौद्ध संप्रदायों के प्राचीन सूत्रों मे आने वाले आमगन्ध शब्दों के 'आम' इस शब्द का मांस के अर्थ में ही प्रयोग किया गया है । इस से प्रतीत होता है, कि आज से ढाई हजार