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________________ यहाँ पर हमने भगवान महावीर के रोग, उसके होने के कारण, लक्षण, तथा अपथ्य आदि का विस्तृत स्वरूप वर्णन कर दिया है। जिस का संक्षेप इस प्रकार है। गोशालक के तेजोलेश्या छोड़ने पर उस के तीव्र ताप के कारण भगवान् को अवोगामी रक्त-पित्त, तथा रक्तातिसार हो जाने के कारण खून की टट्टियां लग गयी थीं। पित्तज्वर तथा दाहरोग भी थे, जिनके कारण तीव्र ज्वर तथा शरीर में बहुत अधिक जलन भी थी। ये रोग गरम, स्निग्ध, भारी पदार्थ तथा खट्टे, खारे, कड़वे पदार्थों के सेवन से ___ हम यहां पर इस बात का विचार करेंगे कि इस रोग में मांसाहार लाभकारी है अथवा घातक ? मांस के गुण और दोष-- ____ "स्निग्ध, उज्म, गुरु, रक्त-पित्तजनक वातहर । सर्वमांस वातध्वंसि वृष्यं ॥" अर्थात्-~मांस स्निग्ध, गरम, भारी, रक्त-पित्त को पैदा करने वाला तथा वात को दूर करने वाला है। सब प्रकार के मांस वातहर तथा भारी है। यदि भगवान् महावीर के रोग का विचार करे तो यह बात निर्विवाद सिद्ध हो जाती है कि मुर्गे का मांस इस रोग को निवारण नहीं कर सकता, क्योकि मास इस रोग को उत्पन्न तथा वृद्धि करने वाला है। यह आयुर्वेद शास्त्र का स्पष्ट मत है। अत: इस से यही फलित होता है कि भगवान महावीर पर मांसाहार का दोष लगाना नितान्त अनुचित है। इस लिये रेवती श्राविका द्वारा इस औषध दान में जो द्रव्य दिया गया भा वह कुक्कुट मांस (मुर्गे का मास) कदापि नहीं था, किन्तु कोई वनस्पति विशेष थी । यह ओषध कौनसी थी इस का निर्णय हम आगे करेंगे।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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