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तथागत गौतम बुद्ध को निम्रन्थ अवस्था को तपश्चर्या में
मांसाहार को ग्रहण न करने का वर्णन । हम इस निबन्ध के प्रथम खण्ड के नवमे स्तम्भ में लिख आये हैं कि गौतम बुद्ध ने कुछ काल तक निग्रंथ अवस्था में रह कर निर्गय परम्परामान्य तपश्चर्या को किया था। उसमें बुद्ध ने स्वयं कहा है कि मैं-१मत्स्य-मांस-सुरा आदि वस्तुए नहीं लेताया।२--बठेहए स्थान पर दिये हुए अन्न को और ३-अपने लिये तैयार किये हुए अन्न को ग्रहण नहीं करता था, इत्यादि । (मज्झिम निकाय महासीहनाद सुत्त)
इससे यह फलित होता है कि १-यदि बुद्ध के समय निग्रंथ परम्परा मे मासाहार का प्रचार होता तो गौतम बुद्ध नियचर्या का पालन करते समय के वर्णन मे कदापि यह न कहते कि "मै मत्स्य-मांससुरा आदि का सेवन नही करता था" । २-क्योंकि बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद तो बुद्ध तथा उनके भिक्षु मासाहार करते थे, तब जन आदि अन्य पंथों वाले, जो इन अभक्ष्य पदार्थों का सेवन नहीं करते थे, वे बौद्धों पर इस शिथिलता के लिये आक्षेप भी किया करते थे। यदि निग्रंथ परम्परा मे मांसाहार का प्रचार होता तो गौतम बुद्ध अपने बचाव के लिये जैनों को उत्तर में यह अवश्य कहते पाये जाते कि तुम भी तो मासाहार करते हो? किन्तु ऐसा आक्षेप बौद्ध ग्रंथो से कही भी उपलब्ध नहीं होता।३यदि निग्रंथ परम्परा में मांसाहार का सर्वथा निषेध न होता तो सम्भवतः गौतम बद्ध निग्रंथ धर्म को त्याग करने की आवश्यकता प्रतीत न करते । उन्होंने निम्रत्यचर्या की इस कठोरता के पालन करने में अपने आप को असमर्थ पाया; इसलिये उन्हें इस मार्ग को छोड़े विना अन्य कोई उपाय