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________________ संघ मासाहारी होते (चाहे वह फिर अपवाद रूप से अथवा उत्सर्ग रूप से हो) तो यह बात निश्चित है कि अन्य तीर्थिक जनों पर मासाहार का आक्षेप किये बिना कदापि न रहते ; वे अवश्य ही इनकी अवहेलना करते। स्यों कि. हम देखते हैं कि एक पंच काला अपते पंथ के प्रचार के लिये दूसरे पंथ के मामूलीसे दोष को पाने पर उसे बहुत बडे रूप में बढा चढ़ा कर अथको ठीक और निर्दोष बात को भी उस की विपरीत व्याख्या कर लोगों के समक्ष विकृत रूप में दिखाने के लिये कोई कसर बाकी उठा नहीं रखता, जिस से उस धर्म के प्रति घृणा पैदा करके जनता को अपनी ओर आकृष्ट किया जा सके। ऐमाखंडन-मंडन प्रायः प्रत्येक पंथ के दर्शन शास्त्रों में पाया जाता है । तथा अनेक बार ऐसा भी देखा जाता है कि 'आचार सम्बन्धी भी आलोचना करके उस पंथ के विरोध में प्रचार किया जाता है। ऐसा होते हुए भी तत्कालीन किसी भी धर्म-संप्रदाय वाले ने जैनों पर मांसाहार का आरोप नहीं लगाया। इस से यह स्पष्ट है कि जैनों में मासाहार का पूर्ण रूप से सदा निषेध चला आ रहा है। उन के इस पवित्र आचार से सब लोग पूरी तरह से परिचित थे। ऐमी अवस्था में उस समय यदि कोई गोपालदास पटेल या धर्मानन्द कोसाम्बी जैसा व्यक्ति ऐसा आक्षेप करने का दुःसाहम करता भी तो जनता मे उसकी प्रतिष्ठा जमने की बजाय उसे मिथ्या प्रलापी समझकर उसके प्रति अश्रद्धा हो जाना स्वाभाविक था। इस से यही फलित होता है कि जैन तीर्थकर, निर्धन्य श्रमणादि चतुर्विध जैनसघ कदापि मासाहार नही करते थे।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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