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श्रीमाल, पोरवाल आदि वर्गों की स्थापना की, जो तब से लेकर आज रक कट्टर निरामिषाहारी हैं।
५--मारवाड़, मेवाड़, गुजरात आदि प्रदेशों में जहां पर अनेक गीतार्थ निर्गयों ने जैनधर्म का अनेक शताब्दियों तक प्रचार किया, उनके उपदेशों के प्रभाव से इन सब प्रदेशों की अधिकतर जनता निरामिषाहारी है।
इस से नि संकोच स्वीकार करना पड़ता है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी (निग्गंठ नायपुत्त) की अहिंसा मे यदि मत्स्य-मांस आदि अभक्ष्य पदार्थों के भक्षण करने की आज्ञा होती तो जैनधर्मावलम्बी तथा उन के प्रभाव वाले क्षेत्र में भी आज मत्स्य-मांस आदि अभक्ष्य पदार्थ भक्षण करने की शिथिलता आये बिना कदापि न रहती।