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मांसाहारी प्रदेशों में रहने वाले जैनधर्मावलम्बियों का: जीवनसंस्कार तथा उनके प्रभाव वाले प्रवेशों में
अन्य धर्मावलम्बियों पर उनका प्रभाव
१---भगवान महावीर की आदर्श अहिंसा का ही यह प्रभाव है कि भूतकाल में अथवा वर्तमान काल में मांसाहारी प्रदेशों में भी निवास करने वाले जैनधर्मावलम्बी आज भी कट्टर निरामिषाहारी हैं।
२--जो जातियाँ हजारों सैकड़ों वर्ष पहले जैन धर्म को मानती थीं और बाद में निग्रंथ श्रमणों के विहार उन प्रदेशों में न होने से सैकड़ों वर्षों से जैन धर्म को भूल कर अन्य संप्रदायों मे मिल चकी है, परन्तु उनके वंशजों को अपने पूर्वजों के न होने का ज्ञान है, वे सराकादि जातियाँ बंगाल-बिहार जैसे आज के मांसाहारी प्रदेशों में रहते हुए भी कट्टर निरामिषाहारी है। रात्रिभोजन की भी त्यागी हैं, मद्य-मांस-मत्स्य आदि सात कुव्यसनों को भी त्यागी है, भगवान् पार्श्वनाथ को अपना कुलदेवता मान कर उनकी पूजा-उपासना भी करती हैं, मार्गानुसारी के गुणों के पालन में भी तत्पर रहती हैं, इसलिये इन्हें आज भी इस बात का गर्व है कि वे आज तक किसी भी फौजदारी अपराध से दंडित नहीं हुई।
३--तथा जहाँ-जहाँ पर जैन धर्मावलम्बियों का आज भी प्रभाव है वहां रहने वाली वैष्णव, शैव आदि जातियां ऐसी हैं जो जैन धर्मानुयायी न होते हुए भी कट्टर निरामिषाहारी हैं।
४-आज से हजारों-संकड़ों वर्ष पहले कई मांसांशी जातियों को कई निर्ग्रयों ने जैन धर्म में अहिसामयी दीक्षा दे कर भोसवाल, खंडेलवाल,