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________________ (८) अन्य तीर्थकों (जैनेतरों) द्वारा जैनधर्म सम्बन्धी पालोचना में मांसाहार के प्राक्षेप का प्रभाव अपने-अपने सिद्धान्तो के प्रचार के लिए प्राय: सभी धर्मावलम्बी अन्य धर्मों की उचित अथवा अनुचित आलोचना करते पाये जाते हैं। इसी भावना के कारण ही "न्याय-तर्क शास्त्रों का निर्माण हुआ। यदि जैन धर्मानुयायियों ने अन्य दार्शनिकों की आलोचना की है, तो अन्य दार्शनिकों ने भी जनधर्म की आलोचना की है। १-बौद्धों ने जैनों की तपश्चर्या तथा अनेकान्त आदि सिद्धान्तों की गलत व्याख्याएं करके इन सिद्धान्तों का अपने ढंग से खण्डन किया है । किन्तु जनों पर मत्स्य-माँस-मदिरा आदि के खान-पान का अथवा उनका उपयोग करने का कहीं भी आक्षेप नहीं किया। २--वैदिक विद्वानों ने जनों के याज्ञिकहिंसा विरोध के बचाव के लिए उन पर तो आक्षेप किये हैं कि यदि यज्ञ में की जाने वाली पशुहिंसा, जो कि धार्मिक मानी जाती है पापमूलक है तो तुम जैन लोग उपाश्रय, मंदिर आदि निर्माण, देवपूजा आदि धार्मिक कृत्यों में होने वाली हिंसा को अहिंसक रूप में कैसे समावेश कर सकोगे? इसके साथ ही स्याद्वाद आदि सिद्धान्तों की भी अपने ढंग से व्याख्या करके कड़ी मालोचना की है। किन्तु उस समय के विद्वानों ने जैनों पर मत्स्य-माँसमदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थों के आहार करने का आक्षेप बिल्कुल नहीं किया। ३-यदि कोई ऐसा तक करे कि शायद जैनों का साहित्य अन्य धर्मावलम्बियों के हाथ में न गया हो इसलिए जनों के मांसाहार की
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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