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________________ उपदेश तो करे, किन्तु उसे अपने आचरण में न उतारे तो उस सिद्धान्त का और सस सिद्धान्त के प्रचारक का जनसमाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, [गौतम बुद्ध ने अहिंसा का प्रचार तो किया, किन्तु स्वयं मांसाहार का त्याग नहीं किया, फलतः आज भी बौद्ध धर्मावलम्बियों में मांसाहार प्रायः सर्वत्र प्रचलित है] । हम लिख आये हैं कि भगवान महावीर ने अहिंसा का उपदेश दिया और साथ ही जीवन में भी बोत-प्रोतकर अहिंसा का पूर्णरूपेण पालन किया। फलतः आज भी जैनधर्मावलम्बियों में मत्स्यमांस-मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थों का सेवन पूर्ण रूप से त्याज्य है। जैन तीर्थङ्करों तया निम्रन्थ श्रमणों के आचारों को समझ लेने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसी आदर्श अहिंसा के उपदेशक तथा प्रतिपालक सिंह नामक निर्ग्रन्थ श्रमण मांसाहार न तो ला ही सकते थे और न ही श्रमण भगवान् महावीर उसे लाने की आज्ञा ही दे सकते थे। ३-औषय बनाने तथा देने वाली रेवती भाषिका का व्यवहारिक जीवन मनि सिंह उस औषध को किसी कसाई अथवा यज्ञस्थल से नहीं लाये थे और न ही किसी मासाहारी के वहाँ से लाये थे। वह तो उसे एक उत्कृष्ट जैन श्राविका (श्रमणोपासिका) के घर से लाये थे, जिसका नाम था रेवती, जो कि एक धनाढ्य सेठ की भार्या थी। इस रेवती का वर्णन प्राचीन जैनागम शास्त्रों में इस प्रकार पाया जाता है। १--"समणस्स भगवो महावीरस्स सुलसा-रेवइ पामुक्खाणं समणो. बालियापं तिन्नि सयसहस्सीओ अट्ठारस सहस्सा उपकोसिया समगोवामियाणं संपया हत्था" (श्री कल्प-सूत्र वीर चरित्र) २--"तएणं तीए रेवतीए गाहावड़णोए तेणं बव्वसुद्धण जाव-दाणेण सोहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए निबद्ध, जहा विजयस्स जाव जम्म-जीवियफले रेवती गाहावइणीए।" (भगवतीसूत्र शतक १५) ३-"समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तित्वम्मिहि जीवेहि तित्पय
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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