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( ८९ )
| बुद्ध के मध्यम मार्ग का प्रचार पशु-यज्ञों को बन्द कराने में सफल सो हुआ परन्तु माँसाहार के प्रचार को न रोक सका और स्वयं भी मांसाहारी बन गया ।
(छ) भगवान् महावीर ने त्याग और तपस्या के नाम पर रूड़ शिथिलाचार के स्थान पर सच्चे त्याग और सच्ची तपस्या की प्रतिष्ठा करके भोग की जगह योग के महत्त्व का वायुमंडल चारों और उत्पन्न किया । परन्तु बुद्ध ने सच्चे त्याग और तप को न समझने के कारण इनकी अवहेलना कर स्थान-स्थान पर कड़ी आलोचना की हैं।
(ज) निग्रंथ तपस्या के खंडन करने के पीछे बुद्ध की दृष्टि मुख्य यही रही है कि तप यह कायक्लेश है, इन्द्रिय और देहदमन मात्र है; उसके द्वारा दुःख सहन करने का अभ्यास तो बढ़ता है लेकिन उससे कोई आध्यात्मिक शुद्धि और चित्तक्लेश का निवारण नहीं होता इसलिए देहदमन या कायक्लेश मिथ्या है ।
भगवान् महावीर ने भी यही कहा है कि देहदमन या कायक्लेश कितना ही उग्र क्यों न हो पर यदि उसका उपयोग आध्यात्मिक शुद्धि और चित्तक्लेश के निवारण में नहीं होता तो वह देहदमन या कायक्लेश मिथ्या है ।
इस का मतलब तो यही हुआ कि आध्यात्मिक शुद्धि के बिना सम्बन्ध वाली तपस्या भगवान् महावीर को भी अभीष्ट नहीं थी ।
भगवान् महावीर और बुद्ध की ऐसी समान मान्यता होते हुए भी बुद्ध ने निर्ग्रन्थ तपस्या का खण्डन अथवा कड़ी आलोचना क्यों की इसक विचार करना भी ज़रूरी है ।
(झ) अपनी शिथिलता के कारण जब बुद्ध को त्याग और तपमय आवार को त्याग कर अपने आचार-विचारों सम्बन्धी नये सुझावों को अधिक-से-अधिक लोकप्राह्य बनाने का प्रयत्न करना था, तब उनके लिये ऐसा किये बिना नया संघ एकत्र करना और उसे स्थिर रखना असम्भव था ।