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________________ ( ८७ ) (ख) बुद्ध ने बुद्धत्व की प्राप्ति से पहले निर्ग्रन्थचर्या के अनुसार तपश्चर्या की, बाद में इससे ऊब कर उन्होंने तपश्चर्या का त्याग कर दिया और तत्पश्चात् बुद्धत्व प्राप्ति उद्घोषणा करके नये पंथ की स्थापना की। तब उन्होंने निर्मन्थों के तपप्रधान आचारों की अवहेलना भी की और कड़ी आलोचना भी की। भगवान् महावीर के माता-पिता तथा मामा महाराजा चेटक आदि तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के उपासक थे। यानी भगवान् महावीर का पितृधर्म पावपित्यिक निर्ग्रथों का था । उन्होंने कहीं भी निर्ग्रथों के मौलिक आचार एवं तत्त्वज्ञान की जरा भी अवहेलना नही की है । प्रत्युत निग्रंथों के परम्परागत उन्हीं आचार-विचारों को अपनाकर अपने जीवन के द्वारा उन का संशोधन, परिवर्तन एवं प्रचार किया है । (ग) भगवान् महावीर ने मत्स्य- मांसाहार आदि अभक्ष्य पदार्थो का सर्वथा निषेध किया है और निग्रंय श्रमण को नवकोटिक अहिंसा पालन करने के लिए फरमाया है, यही कारण है कि निग्रंथ श्रमण तथा निर्ग्रथ श्रमणोपासक (जैन श्रावक) आज भी कट्टर निरामिषाहारी हैं । जबकि बौद्ध मृत मांस का निषेध नहीं करते, जिसके परिणाम स्वरूप आज का बौद्ध जगत् प्रायः सर्व प्राणियों का मांस भक्षक दृष्टिगोचर हो रहा है । (घ) भगवान् महावीर के समस्त साधकजीवन में अहिंसा-संयमतप ये तीनों बाते मुख्य हैं । इनकी सिद्धि के लिए उन्होंने बारह वर्षों तक जो प्रयत्न किया और उसमें जिस तत्परता तथा अप्रमाद का परिचय दिया वैसा आज तक की तपस्या के इतिहास में किसी व्यक्ति ने दिया हो यह दिखाई नहीं देता । परन्तु बुद्ध ने इसी तप को देहदंडन कहकर उसकी अवहेलना की है; क्योंकि बुद्ध ने अपनी शक्ति का विचार किये बिना एवं देखा-देखी तप द्वारा शुष्क देह-दमन किया था। जिसका परिणाम यह हुआ कि बुद्ध की सहनशीलता में कमी आयी, और तप को छोड़ कर मध्यम मार्ग की स्थापना करने के लिए देह दुःख और
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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