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________________ इस औषध को सेवन करने वाले, औषध लाने वाले । तथा प्रोषध बनाने और देने वाली का जीवन परिचय १--वीतराग, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीर्थकर भगवान् वर्धमान-महावीर स्वामी ने रक्त-पित्त (पेचिश) तथा पित्तज्वर की व्याधि को मिटाने के लिए इस औषध का सेवन किया। २-निग्रंथ श्रमण सिंह ने यह औषध लाकर दी। ३-रेवती श्राविका ने इस औषध को अपने घरके लिए बनाया और सिंह मुनि को भगवान महावीर के रोगशमन के लिए प्रदान किया। १-सर्व प्रथम श्रमण भगवान् महावीर के सम्बन्ध में विचार करते भगवान महावीर गौतम बुद्ध के समकालीन थे। दोनों श्रमण संप्रदाय के समर्थक थे। फिर भी दोनों के अन्तर को जाने बिना हम उनके आचार-विचार सम्बन्धी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। (क) पहला अन्तर तो यह है कि बुद्ध ने महाभिनिष्क्रमण से लेकर अपना नया माग-धर्मचक्र प्रवर्तन किया, तब तक के छः वर्षों में उस समय प्रचलित भिन्न-भिन्न तपस्वी और योगी संप्रदायों का एक-एक करके स्वीकार-परित्याग किया। अन्त में अपने विचारो के अनुकूल एक नया ही मार्ग स्थापित किया, जबकि महावीर को कुलपरम्परा से जो धर्ममार्ग प्राप्त था वह उसे लेकर आगे बढ़े और उस धर्म में अपनी साहजिक विशिष्ट ज्ञानदृष्टि और देश व कालकी परिस्थिति के अनुसार सुधार या शुद्धि की । बुद्ध का मार्ग नया धर्म-स्थापन था तो महावीर का मार्ग प्राचीन काल से चले आते हुए जैनधर्म को पुनःसंस्कृत करने का था।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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