SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४-५ ) निग्रंथ श्रमरण (मुनि) तथा निग्रंथ श्रमणोपासक (श्रावक) का प्राचार इस निबन्ध के प्रथम खण्ड में स्तम्भ नं० २ से ७ तक हम देख चुके हैं कि १-जन तीर्थकर के आचार, २-निम्रन्थ श्रमण, तथा ३निर्मथ श्रावक-श्राविकाओं (तीनों) के आचार-विचार से यह बात स्पष्ट है कि जैन दर्शन तथा आचार को सम्यग्ज्ञान पूर्वक चारित्र में उतारने वाला कोई भी व्यक्ति-फिर वह चाहे तीर्थकर हो, श्रमण हो अथवा व्रतवारी श्रावक हो--कदापि मत्स्य-मांस-मदिरा आदि पदार्थों का सेवन नहीं कर सकता । इन पदार्थों को जैनागमों में अभक्ष्य कहा है और ऐसे अभक्ष्य पदार्थों के सेवन का सर्वत्र निषेध किया है। इनका औषध रूप मे भी तीर्थंकर अथवा निर्ग्रन्थ श्रमण प्रयोग नहीं कर सकते।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy