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को प्राप्त करने के पश्चात् बीस अथवा सोलह भावनाओं में से किसी भी एक-दो अथवा अधिक भावनाओं के द्वारा तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन कर सकता है । सम्यग्दर्शन के अभाव से मिथ्यादृष्टि अन्य किन्हीं भी भावनाओं को आचरण में लाता हुआ कदापि तीर्थकर नामकर्म उपार्जन नहीं कर सकता ।
तीर्थंकर भगवान् का संक्षिप्त आचार तथा विचार जानने के लिए देखें प्रथम खण्ड में स्तम्भ नं० ४ से ७ तक । इन सब स्तम्भों को पढ़ने से पाठक स्वयं जान सकेगे कि तीर्थकरदेव सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् महावीर स्वामी के आचारों तथा विचारों का अवलोकन करने से यह बात स्पष्ट है कि वे कभी भी माँसाहार को ग्रहण नहीं कर सकते थे ।