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________________ ( ८० ) सब प्रकार के पापजन्य मानसिक-वाचिक-कायिक व्यापारों का त्याग कर महान अद्भत तप करते हैं, जिससे चार घाती कर्मों का क्षय करके केवल ज्ञान प्राप्त कर वे सर्वज-सर्वदर्शी होते है, फिर संसारतारक उपदेश देकर धर्मतीर्थ की स्थापना करते है। ऐसे महापुरुष तीर्थकर होते हैं । तीर्थकर भगवान् बदले के उपकार को इच्छा न रखते हुए राजा-रंक, बाह्मण से चाडाल पर्यन्त सब प्रकार के योग्य नर-नारियों को एकान्त हितकारक, संसारसमुद्र से तारक धर्मोपदेश देते हैं। तीर्थकर भगवान् के गुणों का पारावार नहीं, उनके गुण अपार हैं। अतः सबका वर्णन करना असंभव है, फिर भी यहा संक्षेप मे कुछ गुणों का उल्लेख किया जाता है। १ अनन्त केवलज्ञान, २. अनन्त केवलदर्शन, ३. अनन्त चारित्र, ४. अनन्त तप, ५. अनन्त बल, ६. पॉच अनन्त (दान, लाभ, भोग, उपभोग तथा वीर्य) लब्धियाँ, ७. क्षमा, ८ संतोष, ९. मरलता, १०. निरभि. मानिता, ११. लाघवता, १२. सत्य, १३. संयम, १४. इच्छारहितपन, १५. ब्रह्मचर्य, १६ दया (जीवहिमा का नवकोटिक त्याग), १७. परोपकारिता, १८. वीतरागता (राग-द्वेष रहितता), १९. शत्रु-मित्रभाव रहित, २०. स्वर्णपाषाणादि समभाव, २१. स्त्री-तण पर समभाव, २२. मासाहार रहित, २३. मदिरापान रहित, २४. अभक्ष्य (न खाने-पीने योग्य पदार्थ) भक्षण रहित, २५. अगम्यगमन रहित, २६. करुणा के समुद्र, २७. शूर, २८. वीर, २९. धोर, ३०. अक्षोभ्य, ३१. पर निन्दा रहित, ३२. अपनी स्तुति न करे, ३३. अपने विरोधि को भी तारने वाले इत्यादि। (१) मोहनीय, (२) ज्ञानावरणीय, (३) दर्शनावरणीय, (४) अन्तराय इन चार घातिया कम के क्षय करने के कारण १८ दोषों से रहित होते है। "अन्तराया दान-लाभ-वीर्ष-मोगोपभोमगाः, हासो रत्परती भीति गुप्ता शोक एव च।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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