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आ तममी-मनि नथमल' बिहाचे, विहसमाले आदि विशेषणों का भगवान महावीर के मातपक्ष संबोधित तो माना है। किन्तु वैशाली के संबंध में उनकी अनिश्चित स्थिति है।
ना कहना है कि इसका निश्चित अर्थ भी अनवेषणीय हैं। (अतीत का अनावरण पृ० १३१) वस्तुतः उत्तराध्ययनसूत्र की चूर्णि के दूसरे. अर्थ ने उन्हें अनिश्चय में डाल दिया है। क्योंकि वे लिखते है कि वैशालिक विशेषणका संबन्धनवान की माता या जन्मभूमि से होना चाहिए। लेकिन टीकाकारों ने इसके जितने भी अर्थ स्वीकार किये हैं, उनमें जन्मभूमि का कोई संकेत नहीं मिलता। अतः वैशालिक भी विदेह की तरह मातृकल से संबधित था। भगवान महावीर संबन्धित विशेषण हैं। उत्तराध्ययन चूर्णि का तीसरा अर्थ ही इस का वास्तविक अर्थ ज्ञात होता है। शेष विकसित और संभावित अर्थ ही प्रतीत होते हैं। बात्मण परम्परा में भी जनपदवाची विदेह शब्द के अर्थ का विकास पाया जाता है। शतपथ ब्राह्मण माधवविदेघ ने नये जनपद की नींव डाली थी। यह उसके नाम पर आगे चलकर विदेह (विदेघ) कहा जाने लगा। विदेह जनपद के पुरावप्रपित राजा जनक के नाम के साथ यह शब्द विशेषण प्रयुक्त किया जाताहै।तब इसका विशेष अर्थ भी होता है- मुक्त बन्धनरहित या देहातीत। यहां सूत्रकारों ने भी वैशालीय, विदेह, आदि विशेषणों का भगवान महावीर के लिये प्रयोग करते हुए अर्थबोध के एकाधिकस्तरों का उद्घाटन किया है।
यदि भगवान महावीर का सारा परिवार विदेह जनपद या वैशाली का निवासी होता तो उन के पिता, भाई कैलिये "विदेहदिन्ना, विवेहदित्ता, पिलान" के विशेषणों के प्रयोग की कोई सार्थकता नहीं देती? यानि उन केलिये शास्त्रकारों ने इन शब्दों का प्रयोग क्यों नहीं किया? वस्तुतः वैशाली और विदेह से संबंधित विशेषण महावीर के मातृकुल की विशेषता और भगवान केलिये प्रयक्त किये गये हैं और यह स्पष्ट सूचित करता है कि मातकल का जनपद उनके पितकल से सर्वथा भिन्न है और इसी कारण से उस के पृथक उल्लेख की मार्थकता भी है। प्रभु की माता त्रिशला क्षत्रियाणी वैशाली के महाराजा चेटक की बहन थी। चेटक की छोटी पुत्री चेलना का विवाह मगध के राजा श्रोणिक से हआ था। यह अजातशत्रु (कणिक) की माता थी। पाली ग्रंथों में अजातशत्रु केलिये वहीपुत्र का प्रयोग किया गया है जो उसके मातृकल को शापित करता है। यह दूसरी बात है कि भगवान महावीर के नाम के साथ प्रयुक्त मातृकुल सचक विशेषणों में सूत्रकारों और टीकाकारों ने एकाधिक अर्थों का आधासन कर दिया है। भगवान केलिये विदेह विशेषण का प्रयोग कर सूत्रकारों ने भौगोलिक निर्देश नहीं किया, बल्कि उनकी महत्ता का उत्कीर्ण किया है। आचारांगसूत्र की