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'क्षत्रियकंड
ईशानकोण में था। वाणिजग्राम के बाहर ईशानकोण में ही कोल्लाग सन्निवेश था। गौतम इन्द्रभूति प्रभु की आज्ञा लेकर वाणिज्यग्राम में गोचरी केलिए गये और लौटते हुए पास के कोल्लाग सन्निवेश में जहां ज्ञातकुल के लोग थे और उनकी पौषपशाला थी वहां पधारे।
वैशाली नगरी का मानचित्र
उपर्युक्त पाठों के आधार से वैशाली का मानचित्र इस प्रकार तैयार होता है (१) वैशाली के दक्षिण में अणुक्रम से नादिका, कोटिग्राम और गंगानदी । नादिका का दूसरा नाम आतिक था । (२) वैशाली के एक तरफ जल से भरी गंडकी नदी (३) उसके सामने किनारे वाणिज्यग्राम (४) उस के ईशानकोण में पास-पास में दुतिपलासचैत्य और कोल्लाग सन्निवेश। (५) वैशाली से संभवतः वायव्यकोण में भोगनगर था ।
जातिग्राम में ज्ञातक्षत्रयों की बस्ती थी, कोल्लाग में ज्ञातक्षत्रियों के घर तथा उपाश्रय था। इन दोनों स्थानों में ज्ञातखंडवणउद्यान था ही नहीं परन्तु दृतिपलासचैत्यउद्यान था। इसके बीच में चैत्य था । वैशाली और वाणिज्य ग्राम गंडकी नदी के आर-पार अलग-अलग तटों पर आबाद थे। वैशाली गंडकी के पूर्व में था और वाणिज्यग्राम पश्चिमतट पर था। उनके युग्मनाम भी मिलते हैं। जैसे वैशाली - वाणिज्यग्राम। वर्तमान में दिल्ली-आगरा आदि। ये निकटवर्ती सूचक हैं, पर एक नहीं हैं। ऊपर दिये गये विवरण के अतिरिक्त दूसरे कौन कौन से ग्रामनगर थे उनका इसमें कोई उल्लेख नहीं मिलता। इस स्थिति में वैशाली - कुंडपुर या वैशाली क्षत्रियकुंड अथवा वैशाली ब्राह्मणकुंड से युग्मनाम कैसे संभव हो सकते हैं।
हम लिख आये हैं कि कुंडग्राम (क्षत्रियकुंड ब्राह्मणकुंड) पहाड़ियों से घिरा हुआ था। इसलिये यहां पहाड़ नहीं थे। जैसे गंडकी नदी और पहाड़ी नदी जुदा-जुदा हैं, वैसे ही उनके बहाव भी जुदा-जुदा दिशाओं में हैं। इसी प्रकार वैशाली और कुंडपुर - क्षत्रियकुंड का भी आपस में कोई संबंध नहीं है।
अतः आचार्य विजयेन्द्र सूरि एवं पं. कल्याणविजय जी की भगवान महावीर के जन्मस्थान की मान्यताएं भी सर्वथा भ्रामक हैं।
आचार्य तुलसी और मुनि नथमल
आचार्य तुलसी और मुनि नथमल ने विदेहे, विदेहदिन्न, वि