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वैशाली के ग्राम पं. कल्याणविजय जी गंडकी नदी के पूर्व में वैशाली और पश्चिम किनारे कंडपुर, वाणिज्यग्राम, कुमारग्राम और कोल्लाग सन्निवेश मानते हैं। जबकि विजयेन्द्र सरि इस मान्यता को भ्रामक मानकर लिखते हैं कि गंडकी नदी के पर्व में वैशाली तथा कंडग्राम को तथा पाश्चिमी किनारे पर कुमारग्राम, कोल्लाग सन्निवेश और वाणिज्यग्राम मानते हैं। जोकि कंग्राम की स्थापना केलिये दोनों में मतोय । परन्तु शास्त्रों में कुंडग्राम और कुमारग्राम के बीच में जलमार्ग और स्थलमार्ग दोनों बतलाये हैं। इससे इन दोनों की मान्यताएं गलत सिद्ध हो जाती हैं। यह बात तो सच है कि वैशाली के निकट गंडकी नदी थी। क्षत्रियकंह के पास गंडकी नदी होने अथवा गंडकी के कनारे कुंडपुर होने का शास्त्र में एक भी उल्लेख नहीं है। अतः क्षत्रियकुंड के निकट गंडकी नदी थी यह सप्रमाण नहीं है। फलस्वरूप मानना पड़ता है कि वैशाली और वाणिज्यग्राम के बीच में जलमार्ग ही था, स्थलमार्ग नहीं था।
वैशाली के ग्राम दिग्धनिकाय बौद्धग्रंथ में बुद्ध का विहार इस प्रकार है- वैशाली, भंडग्राम, हस्तिग्राम, आम्रग्राम, जम्बुग्राम, भोगनगर और पावा। सुतनिपात में वर्णन है कि अजित आदि १६ जटाधारी अल्लक से निकल कर कौशांबी, साकेत, श्रावस्ति, श्वेतांबी, कपिलवस्तु, कुशीनारा, मंदिर, पावा। भोगनगर और वैशाली होकर मगधपुर (राजगृही) पहुंचे।
महापरीनिव्वाणसत्त में बद्ध का अंतिम विहार अंबला. अस्थिया, नालंदा. पाटलीग्राम (पटना), गंगानदी, कोटिग्राम, नादिका, वैशाली और भंडग्राम आदि में बिहार माना है।
हेमी महावीर चरित्र में लिखा है कि भगवान महावीर वैशाली से निकल कर नाव में बैठकर वाणिज्यग्राम पधारे। (पर्व १० सर्ग ४ श्लोक १३९)
चीनी बौद्धयात्री फाहियान लिखता है कि बुद्धदेव अपने शिष्यों सहित परिनिर्वाण केलिये जाते हुए आम्रपाली वैश्या के बाग के पास से होकर भंडग्राम गये थे उनकी दाहिनी दिशा में वैशाली थी।
साचारांगसूत्र और कल्पसूत्र में उल्लेख है कि भगवान महावीर ने वैशाली और वाणिज्यग्राम में १२ चौमासे किये।
उपासकांन- सूत्र में वर्णन है कि वाणिज्यग्राम नगर था, वहां का राजा जितशत्रु था। भगवान दुतिर्पलाशचैत्य में समवसरो यह वाणिजग्राम के