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क्षत्रियकंड
वीर-वाचना में कहा गया है कि माता के गर्भ में प्रवेश करते समय भगवान तीन ज्ञात (मति, श्रुत, अवधि) से युक्त थे। बचपन से यौवन तक की अवस्था का वर्णन करते हुए उन की विज्ञान संपन्नता का स्पष्ट निर्देश किया गया है। इसलिये तीस वर्ष तक गृहवास का उल्लेख करते समय विदेह शब्द का प्रयोग भौगोलिक क्षेत्र का निर्देशन नहीं करता, बल्कि उनकी आत्मस्थ अथवा देहातीत अवस्था का निर्देश करता है। आचारांग वृत्ति में उनके विदेह शब्द का अर्थ विशिष्ट देहग्रहण केलिये किया है। देहातीत का अर्थ भी ग्रहण किया गया है। त्रिशला माता केलिये विदेहदिन्ना आदि विशेषणों में विदेह का जनपद अर्थ किया है। हम पहले इसका विस्तार से विवेचन कर आये हैं। परम्परा से भिन्न एवं आगा-पीछा सोचे समझे बिना अर्थ को स्थापित करने के लिये ऐतिहासिक प्रमाण की आवश्यकता बनी ही रह जाती है।
डा. योगेन्द्र मिश्र डा. योगेन्द्र मिश्र ने वैशाली के एक मोहल्ले वासुकंड को भगवान का जन्मस्थान माना है। इसकी प्राचीनता की पुष्टि केलिये वैशाली में प्राप्त गुप्तकालीन एक मिट्टी की मोहर के लेख की ओर संकेत किया है। जो इस प्रकार है- वैशालीनामको कमारामात्यं अधिकरण। उनका कहना है कि इस अभिलेख का कुंड स्पष्टतः क्षत्रियकुंड है। क्योंकि इस क्षेत्र में कुंड नामका और कोई स्थान किसी भी स्रोत से ज्ञात नहीं है। 69 लेखक के इस वक्तव्य से स्पष्ट है कि उन्होंने पहले ही यह मान लिया है कि कुंडग्राम-वैशाली में ही होना चाहिये
और वैशाली में जहां भी कुंड शब्द स्थान के नाम के रूप में मिल जाता है उसे वह भगवान की जन्मभूमि कंडग्राम अथवा क्षत्रियकंड मान लेते हैं। किन्त वस्तुस्थिति तो यह है कि मोहर के लेख का कंड शब्द-क्षत्रियकंड को ही अभिहित करता है ऐसा उसमें कोई संकेत नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त कुंड शब्द का प्रयोग स्थान के नामों में बहुत देखने में आते हैं। वाराणसी में लोयाककुंड, दुर्गाकुंड आदि मूलतः तालाव अथवा पुष्करणी हद (हद) सागर आदि के नाम पर कतिपय स्थानों के नाम मिलते हैं। शाहकुंड पोखरामा (पुष्करग्राम) नागहद (हृद) चक्कदह (चक्कहृद) आदि ऐसे ही नामों के उदाहरण हैं। ये सारे नाम विहार राज्य में ही ग्रामों के नाम हैं। अतः इस अभिलेख के वैशालीकंड का अपना भिन्न महत्व हो सकता है। इस का नामांतर वसकंड भी हो सकता है। किन्तु केवल कंड शब्द की समानता के आधार पर उसे क्षत्रियकंड या कुंडग्राम मानना संगत नहीं है।