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क्षत्रियकह
नादिका से विहार किया बौर नादिका से अम्बपालिका के आमवन में पधारे। इस विवरण के अनुसार बुद्ध के इस यात्रा पथ पर क्रमशः पाटलीग्राम (आधुनिक पटना), गंगानदी, कोटिग्राम, नादिका, आम्रपालीवन अथवा वैशाली के भभाग आते हैं। वैशालीसंघ ने भी जैकोबी के मत को मान्यता नहीं दी। उसने हार्नले के मत का अनुसरण किया है। किन्तु वासुकंड भगवान महावीर की जन्मभूमि नहीं है।
१४ श्रीमती स्टीवेंसन ने डा. हानले की भूलों को दोहराया है और उसने एक और भयंकर भल की है। उसने अपने ग्रंथ (हार्ट आफ जैनिज्म) प. २१-२२ में भगवान महावीर को वैश्यकलोत्पन्न बताया है। उस की इस स्थापना की पुष्टि किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं होती। उस ने यह ग्रंथ विद्वान की दृष्टि से नहीं लिखा है। इस को पूर्णतः पढ़ें तो लेखिका का विचार पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि उसने ग्रंथ को एक मिशनरी की दृष्टि से लिखा है। 62
वर्तमान भारतीय इतिहासकारों की भ्रांत
मान्यताएं १. आचार्य विजयेन्द्र सूरि (काशीवाले आ. विजयधर्म सरि के पट्टधर)। भगवान महावीर के जन्मस्थान केलिये इनके तीन मत हैं- (१) वसाढ़ के निकट बसकंड (२) प्रांतिका (३) वैशाली और कोटिग्रम के बीच कोई स्थान (इन का कोई एक मत निश्चित नहीं) भगवान महावीर का जन्म विदेह जनपद में हुआ था, इसकी पष्टि के लिये इन्होंने आचार्य नेमिचन्द्र कुत महावीर चरियं का नीचे लिखा प्रमाण दिया है।
"अत्थि इह भारहे वासे मज्झिम देसस्स मंडनं परम।।
मिरिकंडग्गामनयरं वसुमइ रमणी तिलयं भूयं।।"(पत्र २६) अर्थात- इस भारतवर्ष के मध्यदेश में परममंडन श्री कुंडग्राम नगर जो पृथ्वीतल पर एक अतिसुन्दर तिलकसमान है ऐसा लगता है।
ध्यानीय है कि आचार्य श्री ने अपनी खोखली मान्यता की पुष्टि केलिये उपर्यक्त उद्धरण के अर्थ में नीचे लिखी बातें और जोड़ दी हैं। १.विदेह बनपद में और २. ऐसा लगता है। यानि कंडग्रामनगर (जो भगवान महावीर का जन्म स्थान है।) वह विदेह जनपद में है ऐमा (मुझे) लगता है। इन शब्दों में यह प्रतिध्वनित होता है कि- "कंडग्रामनगर विदेह जनपद में था ऐमा संभव हो सकता है। ये शब्द इन की इस मान्यता मे स्वयं ही शंकाशील बतला रहे हैं।