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अध्याय ३
धम्मपद के धार्मिक सिद्धान्त और उत्तराध्ययन में
प्रतिपादित धार्मिक सिद्धान्तो से तुलना
प्रस्तुत अध्याय म प मपद के आधार पर बद्ध अर्हत त्रिशरण निर्वाण धम कम अनुप्रेक्षा आदि बौद्ध मा यताओ का विवेचन है और उत्तराध्ययनसूत्र के आधार पर समानान्तर अथवा सदृश जैन-मा यताओ से तुलना मक अध्ययन ह ।
जिस समय भगवान् बद्ध का लोक म आविर्भाव हुआ उस समय देश में अनेक मतवाद प्रचलित थे। लोगो की जिज्ञासा जाग उठी थी और विचार-जगत म उथल पुथल हो रही थी। परलोक ह या नही कम है या नही कर्मों का पल ( विपाक) होता है या नहीं इस प्रकार के प्रश्नो के प्रति लोगो के हृदय म बडा कौतहल था। एसे ही काल म जब सद्गृहस्थ भी सया वषण म घर बार छोडकर भिक्षु या वनस्य हो रह थे बद्ध का शाक्य वा मे जम हुआ। इनका कुल क्षत्रिय गोत्र गौतम और नाम सिद्धाथ था । य राजा शुद्धोदन के पत्र थे और मायादेवी इनकी माता थी। उस समय पूर्व के प्रदेशो म भत्रियो का प्राधा य था । सिद्धाथ ने राजकुमारो की भांति शिक्षा प्राप्त की परन्तु वे बचपन से ही विचारशील थे और इसीलिए उनकी उत्सुकता जीवन के रहस्यो को जानन के लिए बढ़ने लगी। सासारिक सुखो से ये जल्दी ही विरक्त हो गय और युवावस्था म ही परमाथ सत्य की खोज म एक दिन घर से निष्क्रमण किया तथा काषाय वस्त्र धारण कर भिक्षभाव ग्रहण कर लिया। उस समय तापसो की बडी प्रसिद्धि थी। “न्ह मालम हुआ कि आलार कालाम नि श्रेयस का शान रखत है। सिद्धाथ उनके पास गय और पूछा कि जम मरण याधि आदि दुखों से जीव कैसे मुक्त होता है ? आलार कालाम ने सक्षप में अपन शास्त्र के निश्चय को समझाया। उन्होने ससार की उत्पनि और प्रलय को समझाया और तस्वों की शिक्षा देकर नैष्ठिक पद की प्राप्ति का उपाय बताया। किन्तु सिद्धाप को सन्तोष न हमा । विशेष जानने के लिए वे उद्दक राम पुत्त के आश्रम में गये किन्तु जब उनसे भी सतोष नहीं हुआ तो व अनुत्तर शान्ति-पद की गवेषणा में उरुवेला भाये और नरंजना नदी के तट पर आवास किया। उन्होने विचार किया कि मुझमें भी बता
१ सामन्नफलसुत्त दीपनिकाय प्रथम भाग प ४५-५२।