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धम्मपद में प्रतिपारित तत्वमीमांसा
४ दुलनिरोष मार्ग सत्य
स्खों को दूर करन का रास्ता भी है । अत” यह भी सत्य है।
इस तरह चेतन अचेतन द्रव्य है या नही परमाथ म सुख है या नही इसका कोई समुचित उत्तर न देकर भगवान बद्ध ने यह कहा कि उपरोक्त चार बातें सत्य है । दख से छटकारा चाहते हो तो इन बाय सत्यो पर विश्वास करके दख-निरोष के मार्ग का अनुसरण करो। दु ख-निरोध के माग में जिन उपायों को धम्मपद में बदलाया गया है के ही प्राय उत्तराध्ययन में है अन्तर इतना ही है कि यहाँ बौद्ध-दशन आत्मा की अमाव ( नराम्य ) की भावना पर जोर देता है वहाँ उत्तराध्ययन उपनिषदो की तरह आत्मा के सदमाव की भावना पर जोर देता है।
उपयुक्त चार तत्वों की तुलना उत्तराध्ययनसूत्र के जैन-तत्त्व-योजना से निम्न रूप म की जा सकती है। धम्मपद का द ख उत्तराध्ययनसूत्र के बन्धन के समान है जब कि द ख हेतु की तुलना आस्रव से की जा सकती है क्योंकि जैन परम्परा म आस्रव को बधन का और बौद्ध परम्परा मे दुख हेतु ( प्रतीत्यसमुत्पाद ) को द ख का कारण माना गया है। इसी प्रकार दुख निरोध का माग ( अष्टांग माग ) उत्तरा ध्ययन के सवर और निजरा से तुलनीय है। द खनिरोषगामिनी प्रतिपद् या निर्वाण की तुलना उत्तराध्ययन के मोक्ष से की जा सकती ह ।
२ दुख हेतु (प्रतीत्यसमुत्पाद) २ आस्रव ३ दुखनिरोष का माग __३ सबर और निर्जरा
(अष्टाङ्ग माग) ४ ८ सनिरोषगामिनी प्रतिपद् ४ मोम (निर्वाण) (निर्वाण)