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२४६ । बौद्ध तथा जनवर्ग
गदा त्रिशूल क्षुरिका भल्ली पट्टिस मुसण्डी मुद्गर मूशल शूल अंकुश वावित्र लोहर आदि ।
उतराध्ययन में दास को भी एक काम-स्कन्ध माना गया है । उसका अर्थ है कामना पूर्ति का हेतु । चार काम स्कम्प ये हैं
१ क्षेत्र-वास्तु
२ हिरण्य
३ पशु और ४ दास पौरुष ।
भमि और गृह । सोना चाँदी रत्न आदि ।
जिस प्रकार क्षत्र-वास्तु हिरण्य और पशु क्रीत होते थे । इनका क्रोत सामग्री के रूप में उपयोग स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त नही था ।
होते थे उसी प्रकार दास भी क्रीत किया जा सकता था । दासो को
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वह युग धार्मिक मतवादो का युग था । बाह्य वशों और आचारों के आधार पर भी अनेक मतवाद प्रचलित थे । आदिकाल के मानव ऋजु - जड थे । अर्थात भगवान ऋषभ के समय के मानव सरल प्रकृति के तो थे किन्तु उन्हें अथ-बोध बहुत कठिनाई से होता था । विनीत होने पर भी विवक की कमी थी प्राज्ञ थे । सरल होने के साथ बद्धिमान भी थे। उनके दोनों का सामजस्य था । किन्तु महावीर-युग के मानव वक्र जड थे । अर्थात् कुतक करनेवाले तथा विवेक से हीन थे । जन जन के मन में धम के प्रति निष्ठा प्रतिदिन कम होती जा रही थी । हिंसा झठ लट-पाट चोरी मायाचारी शठता कामासक्ति नादि-ग्रह में आसक्ति मद्य मास भक्षण पर दमन अहकार लोलपता आदि दुगण
मध्यकाल के मानव ऋजुजीवन में विनय और विवेक
बही १९५६ ।
१ असीहि अयसिवण्णाहि भल्ली हिपट्टि सेहि य । उत्तराध्ययन १९।५५ ३८ । अवसोलोहरह जुत्तो जलन्ते समिलाजुए । मुग्गरेहि मुसदीहि सुलेहि मुसलेहिय । तवनारायजुतेण भेत्तूण कम्मक चुय ।
वही १९।६१ ।
वही ९।२२ ।
वही १९।६२ ।
खुरेहि तिक्खधारेहि छरियाहि कप्पणीहिय ।
तथा इसके लिए देखिए - वही ३४।१८ १९/५७ २११५७२२/१२ २ ।४७ २७।४-७ आदि ।
२ खेत्त वत्थ हिरण्णं च पसवो दास-पोरस |
चत्तारि काम खन्धाणि तत्य से उववज्जई ॥
वही ३।१७ । ३ पावदिट्ठी उ अप्पाण सासं दासव मन्नई । वही १।३९ ।