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२१ सिवान
उत्तराध्ययनसूत्र में ब्राह्मण के लिए माहम शम का उल्लेख है जिसका वर्ष ग. सुदर्शनलाल जैन ने 'मतमारो किया है। उस युग म ब्राह्मणो म यम-माग का प्रचलन था । वे अपने विद्याथियों के साथ इधर-उधर परिभ्रमण भी करते थे। उत्तरा ध्ययनसूत्र में भी विजयघोष ब्राह्मण के यज्ञ का उल्लेख है । जयघोष बार विजयघोष नाम के दो भाई थे। जयघोष मुनि बन गय । विजयघोष ने यज्ञ का आयोजन किया। मुनि जयघोष यज्ञवाट में भिक्षा लेने गये। यज्ञ-स्वामी ने भिक्षा देने से इन्कार कर दिया और कहा कि यह भोजन केवल ब्राह्मणों को ही दिया जायगा। तब मुनि जयघोष ने समभाव रखते हुए उसे ब्राह्मण के लक्षण बताये । भत्रिय
क्षत्रिय युद्ध-कला म निष्णात होते थे। प्रजा की रक्षा करना इनका परम कर्तव्य माना जाता था। उत्तराध्ययनसूत्र म एसे अनकश क्षत्रिय राजामो का उलेख
१ उत्तराध्ययन २५।१९ २ २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ३४। २ उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन प ३९३ ।। ३ के एत्य खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खण्डिएहिं ।
एय खु दण्डण फलेण हन्ता कण्ठम्मिधेतण खलेज्ज जोन ? ॥ अमावयाण वयणं सुणत्ता उद्धाइया तत्थ बहूकुमारा। दण्डेहि वित्तेहि कसेहि चेव समागया त इसि तालयन्ति ॥
उत्तराध्ययन १२।१८ १९ । ४ वही २५वा अध्ययन । ५ इषकार राजा-उत्तराध्ययन १४॥३ ४८ उदायन राजा-वही १८१४८ करकण्ड-वही १८१४६ ४७ काशीराज-वही १८०४९ केशव-वही २२। ६ ८ १ २७ ११।२१ कौशल राजा-वही १२॥२ २२ जय-वही १८॥४३ पणिभद्र-वही १८।४४ विमुख-वही १८०४६ ४७ नग्गतिवही १८४६ ४७ ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती वही १३वां अध्ययन भरत-वही १८३३४ भोगराज-वही २२३८ ४४ मधवा-वही १८३३६ मृगापुत्र-वही १९वां अध्ययन महापप-वही १८०४१ महावल राजा वही १८०५१ रचनेमी-वही २२॥३४-४ राम-वही २२।२ २७ बलभद्र-वही १९६१ २ वासुदेव-बही २२१-३ ७ विजय-नही १८५ श्रेणिक राजा-वही २।२ १ १४ १५ ५४ सगर-वही १८३५ सनत्कुमार-वही १८॥ ३७ सजय रामा-बही १८वा अध्ययन समुद्रविषय-ही २२१३ ३६ ४४ हरिषेण रामा-पही १८४२।