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________________ समानता और विनिता: मिलता है जोबन भवबादि का परित्याग कर दीक्षा लेकर मुक्ति को प्राप्त हो गये । राजा अपने भुषवल से देश पर शासन करता था। वह सर्वसम्पन्न व्यक्ति होता था। छत्र चामर सिंहासन बादि राज बिल थे। राजा का उत्तराधिकारी उसका ज्यष्ठ पुत्र होता था। यदि वह विरक हो जाता तो लघु पुत्र को भी राज्य-सिंहासन है दिया जाता था। राजकुमार यदि दुयसनो में फैस पाता तो उसे देश से निकाल दिया जाता था। गृहपतियों को इन्भ श्रेष्ठी और कीटम्बिक नाम से भी पुकारा गया है। कितने ही गृहपति भगवान् महावीर के परमभक्त थे। उनके पास अपार धन-सम्पत्ति थी। वे खेती और व्यापार करते थे । व्यापार करने के कारण इन्हें वणिक भी कहा जाता था। उस समय व्यापार जहाजो के द्वारा भी चलता था। उत्तराध्ययन म कुछ ऐसे प्रसग मिलते हैं जिनसे यह पता चलता है कि ये लोग व्यापार करते हुए विदेश में शादी भी कर लेते थे तथा व्यापार-सम्बन्धी काम समाप्त हो जाने पर उस विवाहिता स्त्री को साथ लेकर अपने देश लौट आते थे। ये लोग ७२ कलामो का अध्ययन करते थे तथा नीतिशास्त्र में भी निपुण थे। ये लोग दोगुन्दक नामक देव के समान विघ्नरहित होकर सुखों का उपभोग करते थे। कौशाम्बी नाम की नगरी में निवास करनेवाले अनाथी मुनि के पिता अधिक धन का सवय करने से प्रभूतधनसत्रय माम से जाने जाने लगे। इससे पता चलता है कि ये लोग प्राय चतुर धनाड्य और विवेकशील १ उत्तराध्ययन बृहवृत्तिपत्र ४८९ तथा २२।११ । २ वही सुखबोषावृत्तिपत्र ८४ तथा उत्तराध्ययनसूत्र एक परिशीलन उत्तराध्ययन २०१। वही २१०१ ३५।१४ । ३ महावीरस्स भगवो सीसे सोउमहप्पणी ।। ४ चपाएं पालिएनाम सावए बासि वागिए। पिहुडे अवहरतस्स वाणियोदेह धूयर । त ससत्त पइगिज्म सदेसमहत्यिो ॥ ५ बावतरीकलामोय सिक्सिए नीइकोविए । तस्स रूपवइ भज्ज पिया आणइ रुविणीं । पासाए कीलए रम्मे देवो दोगुदगोजहा ।। ६ कोसम्बो नाम मपरी पुराणपुर भेयसी । प्रत्यगासी पिया मनापमयषण संचयो । वही २१॥३॥ बही २१॥६॥ यही २११७। वही २१८.
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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