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२२८ बौद्ध तथा जैनधर्म
वस्त्राभूषण और सामान्य प्रयोग की वस्तुओं और समाज में स्थापित बिभिन्न साधनों का भी विचरण प्राप्त होता है । धम्मपद में ब्राह्मणो की यज्ञ परम्परा के सम्बन्ध में भी सूचनाए मिलती है। साथ हो सामान्य लोगो के धार्मिक आचार विचार देवी देवताओं आदि की भी चर्चाए हैं ।
उत्तराध्ययन में प्रतिपादित सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामग्री
धम्मपद की भाँति उत्तराध्ययन भी विशद्ध धार्मिक ग्रन्थ है पर कलेवर में किचित बडा होने और यत्र-तत्र विवरणात्मक तथा सवाद आख्यानादि सामग्री की उपस्थिति के कारण यह सांस्कृतिक सामग्री की दृष्टि से धम्मपद की तुलना म अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध प्रतीत होता है । नीचे इस ग्रन्थ में तत्कालीन वर्णाश्रम व्यवस्था पारि वारिक जीवन व्यापार शासन व्यवस्था आदि विषयों पर प्राप्त सामग्री का विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है । उत्तराध्ययनसूत्र के सामाजिक एव सास्कृतिक सामग्री के कुछ उल्लेख जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज नामक पुस्तक में डा जगदीश चन्द्र जैन ने किया है । यद्यपि उसमें उत्तराध्ययनसूत्र के सन्दर्भों का भी उलेख हुआ हकिन्तु वह एक व्यापक दृष्टि से लिखा गया ग्रन्थ है। उत्तराध्ययनसूत्र एक परि शीलन नामक ग्रन्थ म डॉ सुदशनलाल जैन ने उत्तराध्ययन में उपलब्ध सामाजिक एव सास्कृतिक सामग्री की विस्तार से चर्चा की है। उनका यह विवेचन सुव्यवस्थित एव व्यापक । उत्तरा ययन की प्रस्तुत सामाजिक एव सास्कृतिक चर्चा में हम उन्हीके इस विवेचन को आधारभत मानकर चर्चा कर रह है । अन्यत्र से भी जो सामग्री उपलब हुई है उसका भी हमने उपयोग किया ह ।
यद्यपि अनक सन्दर्भों म हमें
वर्णाश्रम व्यवस्था
वर्णव्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज का मरुदण्ड था । उत्तराध्ययन
मुख्य रूप से दो प्रकार की जातियाँ थी एक आर्य क्षत्रिय वैश्य तथा शूद्र ये चार वर्ण थे । प्रथम और सस्कारहीन तथा सदाचरण से दूर रहनवाले को
१ जन आगम साहित्य म भारतीय समाज जैन २ कम्मुणा बम्मणो होइ कम्मुना होइ खत्तिओ । वहस्से कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ||
३ उवहसन्ति अणारिया
रमए अज्जवयणं मित वय बममाहण । चरिता बम्म मारिय ।
युग में दूसरी अनार्य और ब्राह्मण सदाचरण करनेवाले को आर्य अनाय कहा गया है । आर्यों के
जगदीशचन्द्र पू २२१ ।
उत्तराध्ययन २५/३३ ।
वही १२।४ ।
वही २५।२ ।
वही १८/२५ ।