________________
२० मानव
समाज में देवी-देवताओं की पूजा प्रचलित थी। पालि-निकाय से भाव होता है कि देवराज इन्द्र सर्वाधिक लोकप्रिय देवता थे। इनकी पूजा करनेवालों को सख्या समाज में सबसे अधिक थी और ब्राह्मणधर्मावलम्बियों के समान बोर भी इनको देवराज ही मानते थे। वे इनका उल्लेख विभिन्न नामों से करते है जैसे शक वासव मषमा मादि । मषवा शब्द का उलेख धम्मपद म भी प्राप्त होता है लेकिन उनके काय और निवास स्थान का वणन उपलब्ध नहीं है । धम्मपद से यह भी ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज में वृक्ष देवता बनदेवी चैत्य पवत कप यम गन्धव नाग आदि की पूजा होती थी। वृक्षों को देवता अप्सरा नाग प्रेतात्मा आदि का निवास स्थान मानकर लोग सन्तान यश धन इत्यादि की अपनी अभिलाषाओ की पूति के लिए वृक्षोपासना करते थे। कतिपय लोग वृक्षवासी प्रेतास्माओं तथा नागो के भय निवारणाय वृक्ष-पूजा करते थे। वस्तुत वृक्ष-पूजन नही होता था पूजा तो की जाती थी पूजित वृक्ष में निवास करनवाले देवता अथवा प्रतात्मा की। भारतीय ग्रामीण जनता म आज भी यह विश्वास प्रबल ह। इसी आधार पर कई वक्षो को देव-स्वरूप माना जाता है जसे - पिप्पल । जब इसको दार्शनिक आधार प्रदान किया गया तो समस्त प्रकृति परमेश्वर की अभिव्यक्ति मानी गयी पर जनता के विश्वास का आधार तो अपने मूलरूप म ही बना रहा।
धम्मपद में सावजनिक काय-सम्बधी उलेख तो नही है लेकिन इस अन्य पर लिखी गयी टीकाओं से ज्ञात होता है कि जनता सावजनिक काय म अग्रसर रहती थी और बाग लगाना उपवन का निर्माण पुल बषवाना प्याऊ बठाना कप खोदवाना और पथिकों के विश्राम के लिए धर्मशाला बनवाना उत्तम सावजनिक काय माने जाते थे। इसी प्रकार माग को साफ करना गांवो की सफाई करना तथा सबके उपयोग के योग्य स्थलों को शुद्ध रखना महत्वपूण सार्वजनिक कार्य माने जाते थे।
१ अप्पमादेन मघवा देवान सेटठत गतो। पम्मपद माथा-सख्या ३ । २ बहु वे सरण यन्ति पम्बतानि वनानि च ।
आरामरुक्खचेत्यानि मनुस्सा भय तज्जिता॥ नत खो सरणं खेम नेतं सरणमुत्तम । नेत सरण मागम्म सब्ब दुक्खा पमुच्चति ।।
वही गाथा-सख्या १८८ १८९। ३ उत्तर प्रदेश में बौद्धधम का विकाम डों नलिनामदत्त तथा श्रीकृष्णदत्त
बाजपेयी पृ १६ । ४ धम्मपदकथा मघमाणवक की कथा भिक्षु अमरक्षित (अप्रकाशित )।