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समानता और विभिता २२५
व्यक्तियों के प्रति व्यवहार में समुचित बादर अनुराग एव सस्कार दिखलायें । उपासकों को भी उपदेश दिये गये कि वे अपने माता-पिता अग्रज तथा गुरु का सम्मान करें । इस प्रकार का वन्दन मन वचन और काया का वह प्रशस्त व्यापार है जिससे पथ प्रदर्शक गुरु एव विशिष्ट साधनारत साधकों के प्रति श्रद्धा और बादर प्रकट किया जाता है । इसमें उन व्यक्तियो को प्रणाम किया जाता है जो साधना पथ पर अपेक्षाकृत आगे बढ़े हुए हैं । वन्दन के सम्बन्ध में बुद्ध वचन है कि पुण्य की अभिलाषा करता हुआ व्यक्ति वषभर जो कुछ यज्ञ वह बनलोक में करता है उसका फल पुण्यात्माओं के अभिवादन के फल का चौथा भाग भी नही होता । अत सरलवृत्ति महात्माओं को अभिवादन करना ही अधिक श्रेयस्कर है । सदा वृद्धों की सेवा करनवाले और अभिवादनशील पुरुष की चार वस्तुए वृद्धि को प्राप्त होती है-आयु सौन्दर्य सुख तथा बल । erate का यह श्लोक किचित् परिवर्तन के साथ मनुस्मृति में भी पाया जाता है । उसमे कहा गया है कि अभिवादनशील और वृद्धो की सेवा करनेवाले व्यक्ति की आयु विद्या कीर्ति और बल ये चारों बातें सदैव बढ़ती रहती हैं ।
बुद्धकालीन समाज म पशु भी सम्पत्ति के रूप में माने जाते थे । उनमें कुछ पशु यथा - हाथी घोड युद्ध में भी उपयोगी थे । धम्मपद म हाथियों में महानाग तथा धनपालक नामक हाथी का उल्लेख मिलता है । जब कभी मदोन्मत्त हाथी बन्धन तोडकर भाग जाता था तो महावत उसे अकुश के द्वारा वश में किया करता था । हाथी और घोड पशुओ में श्रेष्ठ माने जात थ । इसके अतिरिक्त खच्चर और सूअर का उल्लेख भी धम्मपद म मिलता है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि सूअर शिकार के काम आते थे ।
१ य किन्चियिटठ चहुत च लोके सवच्छर यजेय पुन्नपेक्खो । सब्बम्पित न चतुभागमेति अभिवादना उज्जुगतेसु सेय्यो ||
धम्मपद गाथा- सख्या १ ८ ।
२ अभिवादनसीलिस्स निच्च
बचावचायिनो ।
चारो धम्मा बढढन्ति आयु वष्णो सुख बलं ॥
३ मनुस्मृति २।१२१ |
४ धम्मपद माया- सख्या ३२५ ।
वही गाथा - सख्या १९ ।