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समानता र विमिता:२२१
बौद्ध-साहित्य में साब-सामग्री या भोजन को पाबनीय या भोजमीय कहा गया है। भोज्य पदार्थों में पूष और दूष से बने अनेक द्रवों का प्रयोग होता था। दूध दही मट्ठा मनसन और पी इनमें प्रमुख थे। दूध में चावल डालकर खीर बनाना बहुत प्रचलित था। धम्मपद में दूध से वही जमाने का उल्लेख प्रास होता है। उस समय दाल का प्रयोग किया जाता था मगर वह दाल किस चीज की है इस बात का स्पष्ट उलेख नही है। भोजन और पेय को मीठा करनेवाले तत्वों में ईख का रस अथवा उस रस से बनाये हुए शक्कर या गुड का उल्लेख भी मिलता है। बुद्ध ने अपने अनुयायी मिथुनो को गुड ग्रहण करने की बाज्ञा दी थी।
धम्मपद मटठकथा से तत्कालीन समाज में प्रचलित मादक पेयों की भी जान कारी प्रास होतो है । इनका उपयोग प्राय' भोजों त्योहारों और मेलों के अवसर पर किया जाता था जब मित्र और परिचित आमन्त्रित होते थे। अट्ठकथा के अनुसार वत्सराज उदयन को पकड लेने के बाद अवन्तिराज बण्ड प्रद्योत तीन दिनों तक लगातार मद्यपान करता रहा किन्तु साधारणतया मद्यपान में दोष माना जाता था। शराबों की दुकानदारी करना अनुचित माना गया है। भगवान बुद्ध ने भिक्षाओं को शराब पीन से मना किया था। किन्तु बीमारी के समय सुरा का उपयोग वजित नहीं था।
बौद्धषम वेश-धारण मात्र से ज्ञान की प्राप्ति नहीं मानता। वेश धारण की साथकता इसीम है कि चित्तमलो का परित्याग हो जाय। जटा गोत्र और जन्म से १ देखिए उपासक सी एस डिक्शनरी ऑफ अली बुद्धिस्टिक मोनास्टिक
टर्स प ७६ १७६ । २ सुत्तनिपात १।२।१८। ३ सज्जु खीरव मुच्चति । धम्मपद गाथा-संख्या ७१ । ४ वही गाथा-सख्या ६४ ६५ । ५ धम्मपद भटठकथा बुद्धघोष सम्पादित एष सी नामन और एल एस.
तैलंग भाग ४ ५ १९९। ६ फूड ऐण्ड ड्रिंक्स इन ऐंश्येष्ट इण्डिया ओमप्रकाश १ ६ -७१। ७ पम्मपद बटठकथा बुखपोष सम्पादित एच सी नार्मन और एल एस.
तैलग भाग १ ५ १९३ । ८ सुरामेरयपानन्ध यो नरो अनुयुम्नति ।
इवमेसो लोकस्मि मूल खनति अन्तनो ॥ धम्मपद गाया-संस्था २४७ । ९ वही गाथा-सख्या ९१ ।