________________
२२ बोरा
नपर्न
बा पुत्री पुत्रवधू वेश्या भिक्षणी उपासिका आदि । भिक्षुणी तथा उपासिका का उल्लेख पम्मपद में प्रत्यक्ष रूप से कहीं भी टिगोचर नही होता है। माताओं के लिए भगवान बुद्ध ने कहा है कि ससार में माता पिता की सेवा करना परम सुखदायक है।
एक निवृत्तिपरक धर्म होने के कारण क्या शान साधना और निर्बाण के मूल प्रश्नों तक ही प्राय सीमित होने के कारण बौद्धषम के अन्यों म तत्कालीन समाज में प्रचलित सस्कारों अथवा वैसी अन्य अनेक संस्थाओं के कहीं भी विस्तृत विवरण नही प्रास होते है यद्यपि बुद्ध जन्म मरण अथवा विवाह से सम्बन्धित अनेक सस्कारों अथवा प्रथाओं की व्यथता को मोर कुछ अस्पष्ट निर्देश अवश्य करते है। ऐसी स्थिति में धम्मपद के आधार पर समाज में प्रचलित संस्कारो धादि का कोई ब्योरवार विवरण नही प्रस्तुत किया जा सकता। धम्मपद म कुछ स्थल ऐसे अवश्य प्राप्त होते हैं जिनसे मृयु के उपरान्त शव क्रिया किस प्रकार की जाती थी इसकी थोडी-बहुत जानकारी उपलब्ध होती है । ग्रन्थ में कायानुपश्यना का उपदेश करते हुए भगवान बुद्ध ने भिक्षओं को श्मशान में पड हुए मृतक शरीरों को देखकर अपने शरीर की वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्रास करने का उपाय बतलाया है। भिक्षुओ को वे उपदेश देते हुए कहते हैं कि वे अर्थात् भिक्षु श्मशान म जाफर एक दिन वो दिन अथवा तीन दिन के भूतको को देख जो फले हुए नीले पडे हुए पोब भरे हुए कौमों गिडो चोलो कुत्तो और अनेक प्रकार के बीवों द्वारा खाय जाते हुए कुछ मांससहित और कुछ मासरहित हड्डी कंकाल. वाले हैं। इस प्रकार मरे हुए शरीर को श्मशान मे फको हुई अपथ्य लौकी की भांति कुम्हलाए हुए मृत शरीर को देखकर भिक्षु को अपने शरीर की नश्वरता के सम्बन्ध में विचार करना चाहिए। १ सुखामेत्तेय्यता लोके अथोपेत्तेयता सुखा ।।
धम्मपद गाया-सख्या ३३२ । २ पस्स चित्तकट बिम्ब असकाय समुस्सित । मातुर बहुसकप्प यस्स नत्यि व ठिति ॥
था-सख्या १४७ । यानि मानि अपत्यानि बलाबनेव सारदे । कापोतकानि बहीनि तानि विस्वान का रति ॥ वही गाथा-सस्या १४९ । अटठीन नगर कत मस लोहित लेपन । यत्यारा मच्च व मानो मक्खो व ओहितो ।। वही गाथा-सख्या १५ । तुलनीय दीघनिकाय हिन्दी अनुवाद पृ १९ -१९२ सुत्तनिपात ११८ ९ १ ११।