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________________ २२२पर नपर्म कोई ब्राह्मण नहीं होता ब्राह्मण वही है जिसम सत्य और षम है। जिसम ये गुण है वही पवित्र है। यदि चित्तराग द्वेष और मोह के मल से अपवित्र है सो जटायें और भृगछाल क्या करेंगे? ऊपरी रूपरग मनुष्यो की पहचान नही ह । दुष्ट लोग तो बडे सयम की भडक दिखाकर विचरण किया करते हैं वे नकली मिट्टी के बन भडकदार कुण्डल के समान अथवा लोहे के बन सोन का पानी चढ़ाये हुए के समान वेश बनाकर विचरण करते हैं और भीतर से मले तथा बाहर से चमकदार होते हैं। धम्मपद से अलकारो के विषय में कोई विशेष सूचना नही प्राप्त होती । हम केवल इतना ही अनुमान कर सकते हैं कि सम्भवत' उस समय समृद्ध-बग की स्त्रियों विशेषकर गणिकायो म स्वनिर्मित आभषणों का ज्यादा प्रचलन था। धम्मपद से मणिकुण्डल का उल्लेख प्राप्त होता है जो बड ही कलात्मक ढग से बने होत थ । धम्मपद से तत्कालीन समाज म प्रचलित कुछ महत्त्वपूर्ण प्रसाधनो की भी जानकारी प्राप्त होती है। पुरुष और नारी दोनो ही विभिन्न प्रकार के प्रसाधनो का उपयोग करते थे यद्यपि प्रमखत यह नारी के जीवन का ही अग माना जाता था। प्रसाधन म फलों और उनसे बनी मालाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान था जो स्त्रियों द्वारा केश विन्यास में प्रयुक्त होती थी। केशो को स्निग्य करने के लिए तेलों का प्रचलन था जो सम्भवत फलो से ही निर्मित होत थ । फलो से अक प्रकार के इत्र भी निकाले जाते थे। धम्मपद म माला बनानवाले कुशल व्यक्तियों की चर्चा है । स्वय कोसल राज प्रमेनजित की रानी मलिका एक मालाकार की पुत्री थी। चन्दन तगर कमल और जही आदि सुधित चीजो का वणन धम्मपद म प्राप्त होता है । पेडो के - - १ धम्मपद गाथा सख्या ३९३ । २ वही माथा-सख्या ३९४ । ३ प्राचीन भारतीय वेश-भषा मोतीचन्द्र पृ ४५ । ४ धम्मपद गाथा-सख्या ३४५ तुलनीय मेरी गाथा क्रमश १३१४।३२९ १३॥ १२२५९ १३।१।२६४ १३३११२६८ १३॥४॥३२९ तथा गाथा-सख्या ११६८। ५ पुप्फशसिम्हा कयिरा मालागुणे बहू । धम्मपद गाथा-सख्या ५३ । ६ चन्दन तगर वापि उप्पल अथ वस्सिकी। वही गापा-सख्या ५५ तथा देखिए गाथा-सख्या ४४ ४५ ५४ ५६ ।।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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