SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध तथा नयाचार १६५ सौन्दर्य को स्त्रियों को पिस्थित होने पर वीतरागतापूर्वक शभध्यान करना । स्त्रियो के रूप 'खकर पुरुष को उसमें आसक्ति नही होनी चाहिए । इसीलिए ग्रन्थ में डकमत ( दलदल ) तथा राक्षसी कहा गया है । । स्त्रियों के श्रोत्रग्राह्य शब्दों का निषेध पंचम समाधिस्थान में स्त्रियों के कजित रुदित हसित स्वनित क्रन्दित rore आदि वचनो को जिनसे कामराग बढ़े न सुनना कारण कि इनसे मन की चलता में वृद्धि होती है और ब्रह्मचय में आघात पहुंचता है । स्त्रियों के साथ की हुई पूर्वरति और काम-क्रोडा का स्मरण न करें स्त्रियो के पूवरति और क्रीडा की स्मृति करनेवाले निग्रन्थ ब्रह्मचारी के ह्मचय में शंका काक्षा और सन्देहादि दोष उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। यम का नाश एव उमाद की प्राप्ति होती ह तथा दीर्घकालिक भयकर रोगों का आक्रमण भी होता है । 9 सरस आहार -पानी तथा प्रणीत रस-प्रकाम का त्याग ग्रन्थ में ब्रह्मचारी के लिए रसो का अत्यन्त सेवन वर्जित है। कहा गया है कि जैसे स्वादु फलवाले वृक्ष पर पक्षी आकर बैठते है और अनेक प्रकार से उसको कष्ट पहुँचाते हैं उसी प्रकार रससेबी (घी दूध आदि रसवान् द्रव्यों के सेवन से ) रुष को कामादि विषय भी अत्यन्त दुखी करते हैं । अत्यधिक भोजन का स्याम जसे वायु के साथ मिलन से वन में लगी हुई अग्नि शीघ्र शान्त नही होती उसी प्रकार प्रमाण से अधिक भोजन करनेवाले ब्रह्मचारी की इन्द्रियाग्नि शान्त नही होती । अत खाने से यदि विकार की उत्पत्ति विशेष होती हो तो उसको त्यागकर चय की रक्षा करनी चाहिए । १ उत्तराध्ययन ३२।१५ । २ पङक भूयाओ इत्थिओ | ३ वही १६।५ गद्य तथा पद्य । ४ बही १६।८ गद्य तथा पद्य और मागे ३२।१४ । ५ नही ३२।१ । ६ वही ३२।११ । ७ वही २६।३५ । वही २११७ ८ १८
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy