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________________ १४ मा गगन १ स्त्री आदि से सकीर्ण स्थान के सेवन का त्याग जहां पर स्त्री पशु नपसक आदि का आवागमन सम्भव है ऐसे स्थानों में शून्य घरो में और जहां पर घरो की सन्धियां मिलती हो ऐसे स्थलों म तपा राजमार्ग में अकेला साधु अकेली स्त्री के परिचय म न आवे । क्योकि इन उपर्यक्त स्थानों में साधु का स्त्री के साथ परिचय म आना जनता म अवश्य सन्देह का कारण बन जाता है। इसलिए इन उक्त स्थानो म सयमी पुरुष कभी न आवे । क्योकि जैसे बिल्लियों के स्थान के पास चहो का रहना योग्य नहीं उसी प्रकार स्त्रियो के स्थान के समीप ब्रह्मचारी को निवास करना उचित नही । इसलिए मुनि को भी स्त्री पश आदि से रहित एकान्त स्थान म ही निवास करना उपयक्त ह। २ निर्ग्रन्थ साधु बार-बार स्त्रियों को कामननक कथा न कहे साध का स्त्रियो की बार-बार कथा नहीं करनी चाहिए और ब्रह्मचय म रत भिक्ष को मन को आनद देनवाली कामराग को बढानवाली स्त्री-कथा को भी त्याग देना चाहिए। ३ स्त्री मावि से युक्त शय्या और आराम का त्याग निग्रन्थ को ब्रह्मचय की रक्षा के लिए स्त्रियो के साथ एक आसन पर बैठकर कथा वार्तालाप परिचय आदि न करते हुए आकीर्णता और स्त्री-जन से रहित स्थान म रहना चाहिए। क्योकि तत्काल वहां पर बठने से स्मृति आदि दोष लगने की सम्भावना रहती है। ४ कामराग से स्त्रियों की मनोहर तथा मनोरम इन्द्रियों का त्याग ब्रह्मचारी भिक्ष को स्त्रियो के अग-प्रत्यय और सस्थान आदि का निरीक्षण करना तथा उनके साथ सुचारु भाषण करना और कटाक्षपूवक देखना आदि बातों को एव चक्षग्राह्य विषयों को यागने के लिए कहा गया है। अत इस प्रकार के प्रसग १ उत्तराध्ययन १६६१ पद्य भाग तथा १६१ गद्य तथा ३२॥१३ १६ ८।१९ २२१४५ १।२६ । २ वही ३२६१३। ३ वही ३६।१६। ४ वही १६३२ पद्य तथा गद्य । ५ तम्हा खल नो निगन्ये इत्थीहिंसद्धि सन्निसेजागए विहरेज्जा । वही १६०५ गद्य । ६ वही १६१५ गद्य।
SR No.010081
Book TitleBauddh tatha Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendranath Sinh
PublisherVishwavidyalaya Prakashan Varanasi
Publication Year1990
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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