________________
बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रथ
अनेकान्त के सम्पादक भी रहे हैं और लेखक भी. सब बाबूजी की सोजन्य और उदारता का ही आपका अनेकान्त के ११वें वर्ष में 'उदगिरि-खण्ड- परिणाम है। गिरि परिचय' नाम का सचित्र लेख प्रकाशित हमा
जैन लक्षणावली (लक्षणात्मक जैन पारिहै । आपकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाए भी अनेकान्त
भाषिक शब्दकोष) लक्षण संग्रह का यह कार्य लगमें प्रकाशित हुई हैं । अनेकान्त के प्रकाशन में बाबूजी
भग दो सौ दिगम्बर और दो सौ श्वेताम्बर ग्रन्थों पर का बड़ा योगदान रहा है। वे उसकी मार्थिव कटि
से हुआ है और उन्हें काल क्रम से दिया गया है । नाई को दूर करना चाहते थे और उसे बहुत ही
उस पर से लक्षण दाब्दों के क्रमिक विकास का अच्छा उच्चकोटि का शोध-पत्र बनाना चाहते थे। अनेकान्त ।
परिज्ञान होता है, साथ ही उन उन ग्रन्थकर्तामों के प्रकाशन में उनका अन्त तक सहयोग रहा।
के मौलिक, संगृहीत एवं अनुकरणात्मक लक्षणों का उनका छोड़ा हुमा यह महान कार्य अब समाज के
सही पता चल सकेगा। अधिकांश ग्रन्थकर्ताओं के विद्वानों और धनीमानी सज्जनों के सक्रिय सहयोग
समय सम्बन्ध में भी प्रस्तावना में विचार किया मे ही पूर्ण हो सकता है।
जायगा । इससे यह ग्रन्थ एक मौलिक कृति के रूप
में प्रत्येक विद्वान, रिसर्च स्कॉलर, लाइरियों और धवलादि सिद्धान्त ग्रन्थों का समुद्धार
स्वाध्याय प्रेमियों के लिए बहमूल्य सिद्ध होगा। मूड बिद्री के 'सिद्धान्त वसदि भण्डार, की स्वाध्यायी जनों को तो तत्व निर्माण में इससे विशेष धवलादि ग्रन्थों की ताडपत्रीय प्रतियां जीण-शीर्ण महायता मिलेगी। इस ग्रन्थ का प्रथम भाग प्रायः हो रही थी। बाबू छोटेलालजी के सतत् प्रयत्न मे वे तैयार है। इसके लिए वायू साहब वर्षों तक प्रतियां श्रीमान धर्मसाम्राज्य द्वारा दिल्ली लाई गई निरन्तर प्रेरणा करते रहे। उन्होंने छपाई की व्यऔर उनका वीर सेवा मन्दिर की ओर से जीर्णो- वस्था का भी प्रबन्ध कर दिया था। परन्तु वे द्वारकार्य नेशनल पार्काईब्ज में कराया गया और अपनी अस्वस्थता के कारण दिल्ली नही पा सके। मूडबद्री में उन ग्रन्थों का फोटो कार्य सम्पन्न किया उनके आने पर ग्रन्थ प्रेम में दिया जाता। वे इस गया। यह सब कार्य बाबू साहब के निर्देशानुसार महत्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए बहुत ही उनके आर्थिक सहयोग मे ही सम्पन्न हवा है । उत्कौटित थे। संद है कि उनकी यह अभिलाषा उनके जीर्णोद्वार का यह कार्य अत्यन्त प्रावश्यक था। जीवन काल में पूर्ण न हो गका । अब शीघ्र ही इससे उन ग्रन्थों को प्रायु कई सौ वषों तक को पूर्ण होगी ऐनी माना है। और बढ़ गई है।
सेवा कार्य की महत्ता धीर सेवा मन्दिर-ग्रन्थ माला
वीर सेवा मन्दिर उनकी प्राणप्रिय संस्था थी। वीर सेवा मन्दिर ग्रन्थमाला के प्रकाशन में भी उसे अपने प्राधिक सहयोग के माथ अपने उच्च बाबु साहब का पूर्ण सहयोग था। वे उसकी प्राधिक विचारों और कतव्य परायणता गे संरक्षित तथा कठिनाई को दूर करने में प्रयलगील रहे है। परि. संचालित किया था। यह उनकी सबसे बडी देन है। रणामस्वरूप वहां से २०-२५ ग्रन्थों का प्रकाशन प्रर्थ सहयोग प्राप्त हो सकता है, परन्तु हर समय हमा है। प्रकाशित ग्रन्थ बड़े ही महत्वपूर्ण हैं और संस्था की उन्नति का ध्यान और उपयुक्त योजनाओं अनमन्धानकर्तामों के लिए उपयोगी है। संस्था को द्वारा पल्लवित करने की बात अलग है। जीवन प्राधिक महयोग के माथ समय-समय पर बाबूजी और धन का नि:स्वार्थ उपयोग करना बड़ा कठिन का उचित परामर्श भी मिलता रहा है । यह है। ऐसे बिरले ही सबक होते हैं जो जीवन को