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________________ बाबू जी का वीर सेवा मन्दिर को योगदान प्रेमचन्द जैन, बी० ए० सं० मन्त्री, वीर सेवा मन्दिर बार छोटेलाल जी जैन को बाब छोटेलाल जी जैन की गणना जैन समाज के सन १६४४ के अक्टूबर-नवम्बर में जब वीर उन प्रमुख साहित्य और समाज सेवियों में को शासन का प्रद्धशताब्दी महोत्सव फलकप्ता के कातिजाती है, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से राष्ट्र, धर्म और कीय मेले पर मनाने का निश्चय किया। गया तब समाज की सेवा निर्भीकता और उत्साह के साथ आपने उसके लिये रात-दिन एक कर दिया। इतना की । गत पचास वर्षों में बाटूजी ने देश, समाज और अधिक परिश्रम किया कि उत्सव के सम्पन्न होते ही साहित्य की जो सेवा की है वह चिरस्मरणीय रहेगी। आपको भस्वस्थता ने प्रा घेरा, और प्रारोग्य प्राप्त प्राप अग्नवाल कुलावतंश सेठ रामजीवनदास सरावगी करने के लिये कलकत्ता से बाहर कई महीनों का के पंचम पुत्र थे । माप अनेक संकटापन्न दशाओं में समय व्यतीत करना पड़ा । उनके विचारों में हड़ता भी अपने स्वास्थ्य की चिन्ता न कर सेवा के क्षेत्र में और अदम्य उत्साह था जिससे वे सफलता प्राप्त अग्रसर रहे । प्रापको जैन पुरातत्व, स्थापत्य और किये बिना किसी भी कार्य को कभी नहीं छोड़ते थे। चित्रकला प्रादि से अधिक प्रेम था। जैन साहित्य वीर सेवा मन्दिर एक ऐतिहासिक संस्था है के विशेषज्ञ थे। पाप अनेक संस्थात्रों का प्रति- जिसके संस्थापक पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार हैं । निधित्त्व भी करते थे। उनमें वीर सेवा मन्दिर के तो इस संस्था में शोध-खोज का कार्य होता है । जैन प्राप प्राण ही थे। वे उसके अध्यक्ष और ग्रन्थमाला साहित्य और इतिहास के सम्बन्यों में अन्वेषण करने के संरक्षक थे । माप अकाल, रोग तथा प्रापत्काल वाली यह एक प्रमख प्राचीन संस्था है जिसकी में अपने प्रारणों की बाजी लगा कर भी जनता जना स्थापना सन् १६२७ में हुई थी। यह संस्था रजिदेन को सेवा करते थे । साधर्मी वात्सल्य की प्राप स्टर्ड है। अब तक जैन साहित्य और इतिहास के में कमी नहीं थी। अतिथि सत्कार के लिए आप सम्बन्ध में इसने बहुत-कुछ छान-बीन की है । परिप्रसिद्ध ही थे। पापको जैन साहित्य और इतिहास रणामस्वरूप बहुत से लुप्त और अप्रकाशित ग्रन्थों से इतना अनुगग था कि वे उसे अपनी बीमारी की की खोज होकर वे प्रकाश में प्रा चुके हैं । कितने ही अवस्था में भी कम नहीं कर सके-उसका कुछ न प्राचार्यों के समय निर्णय में भी शोध-खोज हुई है। कुछ काम करते ही रहे । पाप एक मुयोग्य बाबूजी इस संस्था के मरणपर्यन्त अध्यक्ष रहे और लेखक थे। प्रापके कई महत्वपूर्ण लेख भनेकान्त उसकी प्रगति के निमित्त अनेक योजनाओं का प्रादिपत्रों में प्रकाशित हुये हैं । प्राप दानादि सत्कार्यों निर्माण किया तथा सलाह मशविरा देते रहे । में अपने द्रव्य को लगाते रहते थे। पाप एक सफल जब कभी ४-४, ५-५ महिने ठहर कर संस्था के व्यापारी और अनुसन्धानकर्ता भी थे। संचालन एवं विकास में योगदान देते रहे । संस्था प्रापकी सेवानों का क्षेत्र केवल जैन समाज की प्रार्थिक स्थिति को सुधारने के लिये बाजी तक ही सीमित नहीं था। वे सेवा को धर्म और सतत् प्रयत्नशील रहते थे और स्वयं तथा अपने इष्ट कर्तव्य मानते थे और उसे निरपेक्ष भाव से करते मित्रों को उचित प्रेरणा देकर बिल्लिग, अनेकान्त थे। वे सेवा कार्य में इतने तन्मय हो जाते कि शरीर मासिक और अन्य प्रकाशन के लिए समुचित प्रार्षिक की अस्वस्थता का ध्यान भी नहीं रख पाते। सहयोग देते दिलाते रहते थे। इसी से मुख्तार साहब
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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