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________________ तीन पुश्त का सम्पर्क सुबोध कुमार जैन, पारा कौन पुश्त का सम्पर्क और वह भी बिल्कुल अपने सुख-दुख में लोग इनका सहयोग सहज में पा लेते ॥ निर्दोष रहे यह कम प्राश्चर्य की बात थे। यह निश्चित रूप से कहा जासकता है कि इनके नहीं है ? लेकिन श्रद्धय बाबू छोटेलाल जी ने जिन्हें व्यक्तित्व से इनके परिवार की शान बढी और सभी हम प्यार से चाचा जी कहते थे यह संभव कर संस्था वाले इनका नाम अपनी संस्था में जोड़ने पर दिखाया। हमारे प्रातः स्मरणीय पू० दादा जी, गौरव का अनुभव करते थे। राजर्षि देव कुमार जी, जिस समय प्रत्यंत बीमारी की हालत में इलाज के लिये कलकत्ते पहचे. उस जन वाङ्मय और पुरातत्त्व के शोध और समय छोटेलालजी ने सपरिवार उनकी जो सेवाएं की प्रकाशन की मापकी जो लगन थी वह मनुकरणीय उसे आज भी हमारे परिवार वाले याद करते हैं। है। भगवान महावीर के उपदेशों के प्रचार की ऐसी हमारे पूज्य पिता जी, बा. निर्मलकुमार जी से लगन उन्हें थी कि हम युवकों को भी अपनी भी इनकी मंत्री अत्यन्त घनिष्ठ और अनुकरणीय अकर्मण्यता पर झेप प्राती है । वीर शासन रही। मुझे भी उनका अत्यधिक प्रेम और पाशीर्वाद जयन्ती का जो अविस्मरणीय उत्सव कलकत्त में प्राप्त था। हमा था, उसके पीछे एक मात्र इन्हीं की शक्ति और उत्साह कार्य करता था। मैंने अपनी प्रांखों उन्हें श्री जैन वाला विधाम आरा में उन्होंने स्वयं दिन-रात एक करते हुए देखा है। एवं उनकी प्रेरणा से उनके परिवार वालों ने प्रचुर मात्रा में धन लगाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में प्रद्भुत ऐसे गुणी, प्रेमी, धर्म वत्सल सज्जन का योग दान दिया । अन्त तक वे बाला विश्राम की गुणस्मरण जितना भी हो थोड़ा है । ऐसे व्यक्ति तो प्रबन्ध कारिणी समिति के अध्यक्ष थे और प्रति समाज के लिये, देश के लिये और देश के नवयुवकों समय वे इस संस्था की उन्नति के लिये प्रयत्नशील के लिये जीते जागते उदाहरण होते हैं। रहते थे। एक संस्मरण और उल्लेखनीय है । दिल्ली में पारा की दूसरी संस्था जिससे उनका अनुराग कुछ वर्ष हुये एक ऐसा प्रायोजन किया गया था, था और जो उनकी साहित्यिक रुचि का दिग्दर्शन जिसमें दिसम्बर जैनों की प्रमुख संस्थानों में एकता कराती है-"श्री जैन सिद्धान्त भवन पारा" है। के लिये बड़ा भारी प्रयास हया था । छोटेलालजी कुछ समय पूर्व जब कि इस संस्था की हीरक जयंती का रोल इस प्रायोजन में मैंने बहन निकट से देखा बिहार के राज्य पाल की अध्यक्षता में मनाई गई था। क्या यह कम पोश्चर्य की बात है कि वो थी, आप अस्वस्थ होते हुये भी उसमें शामिल हुये एकत्र सैकड़ों व्यक्तियों में इनके जैसा ऐमा व्यक्ति भी थे और सभी समारोहों में प्रापने सोत्साह भाग हो जिमे दोनों ही न.पों का विश्वाम प्राप्त हो। लिया था। इस महोत्सव को सफलता बिषयक न जाने कैसे इस दुबले-पतले, कमजोर, बीमार आप के उद्गार अभी तक मेरे कानो में गूंजते भौर व्यक्ति में इतनी कर्मठता विद्यमान थी। उत्साह प्रदान करते हैं। हमारी कामना है कि पूज्य चाचा जी का अपने परिवार और अपनी मित्र मंडली में जीवन हम लोगों को प्रकाश स्तम्भ की भांति उन्हें सदा मादर की दृष्टि से देखा जाता था। सत्कार्यों के लिये प्रेरित करता रहे। .
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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