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________________ आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक विमल कुमार जैन सोरया, मड़ावरा (झाँसी) व्यक्ति क्ति के व्यक्तित्व पूर्ण कार्य ही उसके सम्मान के कारण होते हैं । श्रीमान बाबू छोटेलालजी कलकत्ता अभिनन्दन से भी अधिक श्रादर और सम्मान के पात्र थे । यद्यपि बाबूजी को मे निकट से नहीं के बराबर जानता था, लेकिन उनका प्रदर्शपूर्ण व्यक्तित्व, सच्ची कर्म निष्ठा, और व्यापक अध्यवसाय मुझे उनके प्रत्यंत समीप ला देता था । बाबूजी ने जैन पुरातत्व को प्रकाश में लाने का सतत् प्रयत्न किया । एतदर्थं प्रापने देश के विभिन्न प्रान्तों में भ्रमण किया, और खण्डगिरी- उदयगिरि जैसे जैन संस्कृति से परिपूर्ण पुरातत्व स्थानों को प्रकाश में लाए। जैन संस्कृति के उत्थान में आपका जो सफल सहयोग रहा उसके कारण ही उनको पुरातत्त्व विशेषज्ञ के रूप में जानते हैं । अनेकों विद्वानों ने जैन साहित्य एवं पुरातत्त्व की खोज में आपसे इच्छित सहयोग पाकर विशेष सफलताएँ प्राप्त की। प्राचीन जैन संस्कृति के उत्थान में आपका सिद्धहस्त योग रहा। आपका ध्येय पुराने साहित्य एवं संस्कृति की शोध, असहायों की सहायता, नवीन लेखकों एवं अन्वेषकों को प्रोत्साहन, श्रागन्तुकों को सत्परामर्श देना एवं सत्य का अन्वेषरण करते रहना था । "प्रनेकान्त" पत्रिका के संचालन एवं सम्पादन के गुरुतर कार्य को आपने अपनी सच्ची लगन एवं अथक प्रध्यवसाय के द्वारा संचालन कर समाज जागृति में प्रशंसनीय योग दिया । प्रनेक संस्थाओं के गणमान्य पदाधिकारी होने के साथ हो आप "वीर सेवा मंदिर" जैसी उच्च कोटि की संस्था के वर्षो तक अध्यक्षीय पद पर रहकर उसको उन्नति के शिखर पर लेजाने वाले एक अनवरत साधक सिद्ध हुए । आपकी प्रतिभा चहुमुखी थी । आपके द्वारा प्रत्येक क्षेत्र में उठाए गए कदम अनुकरणीय है । सन् १९१७ में कलकत्ता में फैले भीषण इन्फ्लुयेन्जा के प्रकोप से पीड़ित व्यक्तियों, तथा १९४३ में बंगाल के भीषण अकाल में आपने तन मन और धन से जो उदारतापूर्ण सहायता एवं सेवा कार्य किया उसके लिए श्राज भी हजारों व्यक्ति आपकी गौरव गाथा गाते हैं । नोआखाली के भीषण साम्प्रदायिक दंगे के समय आपने हिन्दुनों की जो सहायता की वह प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है । आपका अपना निजी व्यक्तित्व था । कलकत्ते के एक सफल व्यवसायी होने के साथ ही आपने राजनैतिक क्षेत्र में काफी सम्पर्क रखा । 'रायल एसियाटिक सोसायटी के सम्मानित सदस्य होने के साथ ही 'इन्डियन चेम्बर ग्राफ कामर्स' जैसी व्यापारिक संस्थानों की मनोनीत सदस्यता का पाना प्रापकी विशाल प्रतिभा का द्योतक है । अन्वेषण के क्षेत्र में किए गए प्रापके कार्य आपकी कार्यक्षमता, श्रमशीलता और प्रसाधारण सफलता के प्रतीक हैं। ऐसे साधक, पुरातत्व सेवी, एवं समाज हितैषी व्यक्ति की सेवानों के कृतज्ञता स्वरूप जो भी श्रद्धांजलि अर्पित की जाय थोड़ी है ।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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