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पुरातत्व प्रेमी बाबूजी
शारदा प्रसाद पासना के श्री छोटेलाल मारवाड़ी का अपना इतना रुपया नहीं है कि इसको खरीद सके । मैं
पुश्तैनी घरोपा था । उनकी लडकी का मापसे भिक्षा मांगता है। मैंने उसर दिया, "मैंने तो विवाह कलकत्ता के श्री लालबन्द जैन के साथ इसे अपने लिये संग्रह किया है ।" "तो पाप बदला हमा। मैं अपने मोटर के व्यापार क्रम में बहुधा कर लीजिये । संग्रहालय में प्रदर्शित सब मूतियाँ कलकत्ता जाया करता था और नाते के अपने आपने देखी हैं । गोदाम की भी देख लीजिये । पितामह के यहाँ मुक्ताराम बाबू स्ट्रीट में ठहरा इनमें से कोई भी दो भाप ले लीजिये और यह हमें करता था। समीप ही चित्तरंजन एवेन्यू में थी दे दीजिये ।" उन्होंने कहा गोदाम देखने का लालचन्द का घर था। हर यात्रा में इनसे भेंट अवसर चूकना तो अब उचित था ही नही । जाकर होती थी । इन्होने ही अपने बड़े भाई बाबू मैने देखा वहाँ भी भरहुत की मूर्तियां रखी हैं। छोटेलालजी जैन से भेंट करा दी।
बहुत मूर्तियां थी गोदाम में। इन्हें प्रदर्शित करने पुरातत्व में उनकी विशेष अभिरुचि थी और का स्थान भवन में नहीं था । श्री मजुमदार
साहब एक एक मूति दिखला कर कहते थे पाप यह में प्राचीन मूत्तियों का संग्रह कर ही रहा था। हर यात्रा में उनसे मिलने लगा। सम अभिरुचि के।
ले लीजिये, यह ले लीजिये। मैंने कहा, "प्राप तो
स्वयं ही स्वीकार कर रहे हैं कि प्रापके यहां संग्रहित विषयों पर वार्तालाप होता था।
किन्हीं दो मूर्तियों से मेरी मूर्ति श्रेष्ठ है ।" "बाबू पुरातत्त्व प्रेमी के लिये कलकत्ता का जादूघर छोटेलालजी ने कहा, ये स्वयं प्रेमी हैं, देंगे नहीं।" तब (संग्रहालय) तो एक तीर्थ स्वरूप ही है । हर यात्रा श्री मजुमदार साहब ने अन्य प्रसंगों पर बातें की । में मैं वहाँ जाने का अवसर निकालता ही था। एक
इसके पदयात् बाबू साहब के दर्शन नहीं मिले बार बाबू छोटेलालजो मुझे अपने माथ वहाँ
पर श्री नीरज जैन से यह जानकर संतोष हुमा कि ले गये । उनका पूर्ण परिचय तत्कालीन सुपरिण्टेण्डेट श्री एन० जी० मजुमदार से था।
वे मुझे भूले नहीं। हम लोग उनसे मिले । मैने अपने संग्रह की कुछ उनके प्राकस्मिक देहावसान के कारण उनके मूत्तियों के फोटो उन्हें दिखलाये । भरहुत के चक्कर पुनदर्शन की कामना यों ही रह गई। प्रभु से को देखकर वे उछल पड़े । झुककर दोनों हाथ मेरे प्रार्थना है कि उनको प्रात्मा को शांति एवं सद्गति सामने पसार दिये । “भारत सरकार के पास लाभ हो ।