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________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रथ १२ प्रारम्भ नहीं हो पा रहा था। मुख्तार साहब अम न्तुष्ट होकर चले प्राये में दस पांच दिन श्रौर वही रहा और तदनन्तर लखनऊ वापस चला आया । किन्तु उस प्रवास में बाबू छोटेलाल जी को जितना निकट से देखने व समझने का अवसर मिला उतना फिर नही मिला। मुझे तो यही लगा कि इस भद्र पुरुष में मनस्विता है, ममाजहित और संस्कृति संरक्षरण को उत्कट लगन है, उपयुक्त योजनायें बनाने और उनका ॐ नमः करने की निपुरगता है, दूमरों में उत्साह फूंकने और प्रेरणा देने की भी क्षमता है, किन्तु कुछ अपनी स्थायी अस्वस्थता एवं तज्जन्य मानसिक उद्विग्नता के कारण तथा बहुत कुछ सहयोगियों एवं मित्रों की उपेक्षा एवं ढील से शीघ्र ही असन्तुष्ट हो जाने को प्रवृत्ति के कारण उनकी श्रनेक महत्वपूर्ण योजनायें कार्यान्वित न सकी । प्रशा श्रौर निराशा के बीच उन्हें बहुत भूलना पड़ा तथापि अपनी शक्ति, समय और प्रभाव का उपयोग वे यथाशक्य समाज और संस्कृति के हित में निरन्तर करते ही रहे । उक्त कलकत्ता प्रवास के पश्चात् बाबूजी से पत्र-व्यवहार चलता रहा । कभी-कभी वे किंचित् रुष्ट और असन्तुष्ट भी प्रतीत हुए-विशेषकर प्रारम्भ में, उक्त योजना के सफल न हो पाने के कारण, किन्तु दो तीन वर्ष बाद से फिर उनका स्नेह एवं सद्भाव पूर्व की अपेक्षा भी कुछ अधिक प्रतुभूत हुआ । सन् १९६३ के दिसम्बर में जैन सिद्धान्त भवन प्राग की हीरक जयन्ती के अवसर पर उनसे फिर साक्षात्कार एवं वार्तालाप हुआ जिसने उनके सौजन्य एवं स्नेह भावकी मधुर छाप नये सिरे से हृदय पर छोड़ी । बाबू छोटेलाल जी जैसे विद्वत्प्रेमी, संस्कृति प्रभावक एवं समाजसेवी, धर्म और देश के बन्धु प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ । विएण विप्पहूणस्स हवदि सिक्खा रित्थिया सव्वा । विएग्रो सिक्खाए फलं वियफलं सव्वकल्ला ॥ विनय रहित मनुष्य की सारी शिक्षा निरर्थक है । विनय शिक्षा का फल है और विनय के फल सारे कल्याण हैं । ज्ञान का महत्व गाज्जोवो जोवो गागुज्जोवस्स पत्थि पडिघादो । इ खेत्तम पं सूरो लाएं जगममेसं ॥ ज्ञान का उद्योत ही सच्चा उद्योन है; क्योकि उसके उद्योत की कही रुकावट नहीं है। सूरज भी उसकी समता नहीं कर सकता क्योंकि वह प्रक्षेत्र को प्रकाशित किन्तु ज्ञान सम्पूर्ण जगत को । करता
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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