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________________ बाबू छोटेलाल जी : मूक साधक __ डॉ. प्रेमसागर जैन अध्यक्ष : हिन्दी विभाग, दि० जन कॉलिज, बड़ौत प्रा" जिसे वो-पूर्व की बात है। जर्मनी के कौन जानता है कि इसके पश्चात डॉ० ग्नासिनव, का प्रसिद्ध विद्वान टॉ विण्टनित्म कलकना श्री पार० डी० बनर्जी, गयबहादुर आर० पी० विश्वविद्यालय में ठहरे थे। उस समय हिस्ट्री प्रांव चन्द्रा, श्री एन० मी० मजूमदार, डॉ०० आर० इण्डियन लिटरेचर' की रचना का कार्य चल रहा भट्टाचार्य, डा० एम० प्रार. बनर्जी और अमूल्यचन्द्र था। एक दिन कलकना का एक युवा जैन उनमे विद्याभूपण ग्रादि के जैन साहित्य और पुरातत्त्व मिलने प्राया । उमने बातचीत के मिलमिले में सम्बन्धी अनुष्ठान में बाबू छोटेलाल जी ने महत्त्वपूर्ण प्रोजस्विता- पूर्वक कहा कि भारतीय इतिहास के योगदान किया है । उन्होंने अपनी सहायता का प्रत्येक पहल में जैनों का महत्वपूर्ण योगदान है, उल्लेख तक नहीं किया । नाम के पीछे मनवाला उस पर लिख बिना प्रापका यह ग्रन्थ अधूग ही याज का विद्गज्जगत, उनकी इस मौन साधना का रहेगा । डाक्टर माहब ने उगी तेजी के माथ उनर सही प्राकलन कर सके. ऐसा मैं चाहता। दिया कि जैन लोग अपने साहित्य को छिपाये रहते आज से ४० वर्ष पूर्व के कलकत्ता के निवासी है, दिग्वाले नहीं, उस पर हम कैसे लिख सकते हैं। एक ऐसे युवा व्यापारी से परिचित थे, जो दिन-रात नौजवान कुछ क्षगण मौन खड़ा रहा, फिर एक सप्ताह वहाँ की 'पब्लिक लायब्ररी' में पड़ा रहता था। बाद मिलने का वायदा कर शीघ्रता से चला गया। उसने शतशः नहीं सहस्रशः ग्रन्थ और पत्र-पत्रिकामों यथा ममय वह लौटा, उसके हाथ में कागजों को लोटा-पलटा। उनमे जैन साहित्य इतिहास का एक बण्डल था । डॉ. विण्टरनित्म की और पुरातत्त्व-परक उद्धरण संकलित किये। उन्हें योर फेंकते हए उसने कहा कि इस आधार पर व्यवस्थित और सम्पादित किया । उनका एक अंश पाप अपने इतिहास का 'जैन खण्ड पूरा कर जैन विडिलयोग्राफी के पहले खण्ड में प्रकाशित हो चुका मकेंगे, और प्रोटो पर मुस्कान लिये बिदा हो है। विश्व के ख्यातिप्राप्त विद्वानों ने इस पस्तक गया । डॉक्टर महोदय प्राश्चर्यान्वित हो उसे की प्रशंसा की है। रायल एशियाटिक सोसाइटी की देखते रहे । आश्वस्त हो बण्डल उठाया । एक बैठक में अनेक विद्वानों ने इसके दूसरे खण्ड के 'हिस्टी प्राव इण्डियन लिटरेचर' के तीसरे खण्ड का शीघ्र प्रकाश में आने का प्राग्रह किया था । जैनधर्म-सम्बन्धी विभाग, जिसमें लगभग २५० पृष्ठ खण्ड भी रफ पेपसं पर लिखा पड़ा है, उसको हैं, अनेक पौर्वात्य और पाश्चात्य विद्वानों ने पढ़ा व्यवस्थित करना-भर है । किन्तु बाबू जी के प्रत्यहै। मेरी दृष्टि में जैन साहित्य का वंसा इतिहास धिक अस्वास्थ्य के कारण यह कार्य पूरा नहीं हो कोई जैन विद्वान नही लिख सका । वह अपने में सका। एक ऐने व्यक्ति की अावश्यकता है, जो यह पूग प्रामाणिक और अनूठा है । आज डॉ. विण्टर- काम कर सके । कोई आंग्लभाषा का जानकार नित्य को ममूचा विश्व जानता है, किन्तु उस जैन निष्ठावान व्यक्ति अभी तक प्राप्त नहीं हमा। नौजवान को वोई नहीं, जिसने यह मामग्री संजोयी काश, ऐसा हो सके । बाबू जी का यह जैन-संकलनथी । उसका नाम था बाबू छोटेलाल जैन । प्राज कार्य इतना महत्वपूर्ण है कि उसे उनकी जीवन
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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