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________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति पथ स्वागत के लिए वे तन, मन, धन से तैयार रहते थे । आप स्पष्टवादिता में भी अपूर्व थे। प्रापका चाहे कोई कितना ही निकट का क्यों न हो, प्राप उसके दोष देखने पर उसे कहने में नहीं हिचकते थे । अपने मतभेद को प्रकट करने में संकोच नही करते थे, इसी कारण कई व्यक्ति इनसे सन्तुष्ट नहीं रह पाते थे । ये अपने विरोधी को भी श्रावश्यकता पड़ने पर सहयोग देने में आनाकानी नहीं करते थे। आप प्रेमी जी एवं मुख्तार सा० जैसे परीक्षा प्रधानी साहित्यान्वेषियों के मंतव्यों से परिचित थे इसलिए आप प्रत्येक क्रिया की भूमिका, प्राधार का पूरा अध्ययन कर ही उसकी विधेयता या अविधेयता स्वीकार करने थे। आप कभी गलतरुदि को स्वीकार नहीं करते थे। जो भी रूढ़ि या ग्रंथश्रद्धा जनिता कार्य करता उसका माप विरोध करने थे । ग्राप कभी दूसरों की प्रसन्नता की खातिर अपने सिद्धांत की बलि नहीं करते थे। आपने जैन समाज के सुधारकों की यथा संभव सहायता कर सुधार का मार्ग प्रशस्त किया था । नवयुवक का हमेशा पथ प्रदर्शन करने ये किसी भी नवयुवक की मार्ग में लगाने, उसे व्यवसाय साधन जुटाने में हमेशा सहायता करते थे। आप विद्यार्थियों एवं विद्वानों को अध्ययन की प्रेरणा देते रहते थे । वे स्वयं रुग्णावस्था में भी थोड़ी सी होने पर अध्ययन में लग जाते थे। आपने कितने ही व्यक्तियों को नव-साहित्य सृजन की प्रेरणा दी और उनकी रचनाओं के प्रकाशन में भी सहयोग दिया । आपको जैन गम्कृति के सरक्षण एवं विकास की हमेशा मना बनी रहती थी। प्राप विद्वानों नेताओं एवं समाज के कार्यकर्ताओं से अपनी चिता व्यक्त करते रहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने ढंग से अनेक कार्य किए। भाप पुरातत्व सामग्री का स्नाइडले म्प से प्रदर्शन भी यथावसर करते थे। श्रापने कलकत्ता, देहली श्रादि केन्द्रीय स्थानों पर जैन कला एवं संस्कृति की प्रदर्शनियां भी लगाई थी जिसकी सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी। ऐसे निर्भीक समाज सेवी का अभिनंदन करने की योजना चल ही रही थी कि करान काल ने उन्हें हमेशा के लिए छी लिया। वे हमेशा अभिनन्दन का विरोध करते रहते थे। उन्होने कहा कि हमने जो कुछ भी किया था सेवा व कमव्य समझ कर किया था उसके लिए सम्मान या अभि नन्दन कैसा ? ऐसे मूक सेवक, निरभिमानी दानी, उदारमना बाबूजी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ । गत नवम्बर-दिसम्बर माह में आप विशेष रूप से पीड़ित रहे। दिसम्बर के द्वितीय सप्ताह मे स्थानीय मारवादी रिलीफ सोसाइटी के अस्पताल में श्राप को भर्ती कराया गया था । आप इतनी भयंकर बीमारी में भी सांस्कृतिक व साहित्य की चर्चा में रुचि लेते थे। आपने इस शय्या पर रहते हुए भी वीर शासन संघ की ओर से प्रकाशित होने वाली जैन निबंध रत्नावली का प्रकाशकीय वक्तव्य लिखवाया जो आपका अतिम वन्य कहा जा सकता है । इस रुग्णशय्या पर ही आपने श्री अगरचन्द जी नाहटा के निबंधों को प्रकाशित करने की योजना बनाई थी।
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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