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________________ प्रेरणादीप बा० छोटेलालजी डॉ. ज्योति प्रसाद जैन एम.ए., एल.एल.बी., पी.एच डो., लखनऊ कलकना निवासी प्रादरणीय बाबू छोटेलाल जी था, नथापि एक ने दूसरे को सहमा पहिचान लिया. जैन अखिल भारतवर्षीय जैन समाज के तो एक मात्र दो शब्द 'ज्योतिप्रसादजी है। उन्होंने कहे और अमूल्य रत्न थे हो, वे सम्पूर्ण राष्ट्र के भी एक प्रति- साक्षात् परिचय हो गया। स्टेशन से बाहर निकलष्ठित नागरिक एवं महान मेवाभावी सज्जन थे । मेग कर अपनी गाड़ी में लेकर जैन भवन पहुँचे, मेरे सम्पर्क श्रद्धय पं० जगल किशोग्जी मुख्तार तथा उनके ठहरने ग्रादि की व्यवस्था की ओर चले गये। फिर वोर सेवा मन्दिर सरसावा एवं अनेकान्त मासिक तो नित्य उनसे भेट होतो, घंटों विचार विनिमय भी पत्र के साथ लगभग तीस वर्ष पूर्व हुमा और इन्ही के होता उनके स्वयं के निवास स्थान पर भी, व्यावसाद्वारा शने : शनं बाबूजी के साथ भी परोक्ष सम्पर्क यिक दफ्तर और जैन भवन के मेरे कमरे में भी । स्थापित होने लगा। मुख्तार साहब की प्रेरणा और एक-डेढ़ मास मै वही उनक सर्वथा निकट प्रात्मीय बाबूजी के सत्प्रयत्नों एवं प्रदम्य उत्साह से १९४४ की भाँति हो रहा । अपने साथ वे मुझे अपने सहमें राजगृह के पुनीत विपुलाचल पर्वत पर वीर योगियो यथा-स्व. बाबू निमंत कुमार जी, स्व० शासन का माद्ध-ति सहस्त्राब्दी महोत्सव व ही धूम- मेट बलदेवदासजी सरावगी, आदि में मिलाने के धाम से मनाया गया और उमी अवसर पर वीर लिये भी जब तब ले जाते । शीत्र ही कार्तिक शामन संघ की स्थापना हई। यह मात्र एक महोत्सव का अवसर था जिसे देखने के लिये बगाल के मंस्था न थी वरन इसके पीछे एक महत्वपुर्ण तत्कालीन प्रग्रेज गवर्नर तथा अन्य उच्च पदाधिकारी योजना थी जिसके लिये बाबजी ने बड़े ग्रामन्त्रित किये गये थे। बाबूजी की प्रेरणा पर प्रयत्नपूर्वक लगभग दस लाख रुपयों की सहायता के मंने उक्त महोत्सव की एक छोटी सी सनित्र विववचन विभिन्न धर्म प्रेमी श्रीमानों से प्राप्त कर लिये। ररिगका अग्रेजी में तैयार की, जो मुद्रित होकर संघ का केन्द्र कलकत्ता महानगरी निश्चित हुई और विशिष्ट प्रामन्त्रित अजैन एवं विदेशी दर्शकों में उसका कार्य प्रारम्भ करने के लिये उपयुक्त व्यक्ति की वितरित हुई । खोज होने लगी। अन्ततः श्रद्धय मुन्नार साहब के परामर्श से बाबूजी ने इस कार्य के लिये बाबूजी का स्वास्थ्य उस समय भी अच्छा नहीं मुझे चुना । विद्याव्यसन तो था ही, संस्कृति सेवा रहता था । महोत्सव के कुछ ही दिनों बाद कलकत्ता में की भी आकांक्षा थी और कुछ यौवनावस्था का भयंकर दंगा हुआ और उस दो के बीच ही मुख्तार उत्साह था, अम्तु किंचित उहापोह के उपरान्त मैने साहब भी वहां जा पहुँचे । उनके आगमन का उद्देश्य स्वीकति दे दी और सन १६४५ के अक्तूबर माम भी मंघ की व्यवस्था के सम्बन्ध में सन्नोप प्राप्त में एक दिन में हावड़ा स्टेशन जा पहुँना । ट्रेन से करना था। उस दगे के समय गोलियो की बौछार उतरते ही टोपी, बन्द गले के बोट और धोती में एक से बचते हुए मुख्तार साहब को स्टेशन लिवा लाने शान्त भव्य मूर्ति के दर्शन हुए । मैने वाबू जी को के लिये जाने का रोमांचक प्रसंग यहाँ वर्णन नहीं पहले कभी नहीं देखा था, न उन्होंने ही मुझे देखा करूंगा। अनेक कारणं। गे वीर शामन संघ का कार्य
SR No.010079
Book TitleBabu Chottelal Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye, Others
PublisherBabu Chottelal Jain Abhinandan Samiti
Publication Year1967
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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