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उदारमना श्री बाबू छोदेलाल जी जैन सब के जरिये आप जन सामग्री प्राप्त करने के लिए प्रभावों की अनुभूति अन्तः करण से करते थे इसलिये हमेशा प्रयत्नशील रहते थे । प्रापकी पुरातत्त्व की हमेशा उनके दुःखो को दूर करने के लिए तन, मन, अभिरुचि एवं सेवाओं के सम्मानार्थ भारत सरकार धन से तत्पर रहते थे। ने पापको सन् १९५२ में पुरातत्त्व विभाग का अवैत
बाबूजी ने स्वयं बंगाल के प्रसिद्ध ४२-४३ के निक Correspondent बनाया था।
अकाल में पीडित प्रभावग्रस्त गरीबों की सहायता आपने जैन युवकों को पुरातत्व की ओर अभि- की । वे गनी ट्रेड एसोसियेशन की तरफ से माररुचि लेने के लिए प्रेरित किया था। एक बार सन् वाड़ी रिलीफ सोसाइटी के तत्वावधान में बंगाल के १९२३ में प्रापने हजारों पत्र लिख कर जन पंचायतों नोग्राखाली काण्ड के समय हिन्दुओं की सहायतार्थ को हस्तलिखित जैन ग्रन्थों की सूची तैयार करने की वहाँ गए थे। वहाँ महीनों रह कर असहाय अल्प प्रेरणा दी थी।
मरूपकों की हर प्रकार से महायता करते रहे। वे
निर्भीक होकर मुमलमानी मुहल्लों व गांवों में पहुँच १८-ग्राप देश-विदेश के जैन-प्रजन विद्वानो को
जाते थे एवं असहाय और लीगी नादिरशाही के जैन साहित्य एवं संस्कृति सम्बन्धी महत्वपूर्ण सामग्री
शिकार अल्प-संख्यको की महायता एवं रक्षा कर के देते रहते थे एवं उन्हें जैन विषयों को प्रकाश में
कृतकृत्य होते थे। लाने के लिए प्रेरित भी करते रहते थे। डा० विन्टर निटज, डा० ग्लामिनव, श्री पार डी. बनर्जी, राय प्राप जैसे दीन दुम्वी सेवकों के कारण जैन बहादुर प्रार.० पी० बनर्जी, श्री एन० जी० बनर्जी. समाज ही नहीं अपितु प्रत्येक भारतीय का सिर श्री एन० जी० मजुमदार, श्री के० एन० दीक्षित, गौरव में ऊँचा हो उठता है। ऐसे निःस्वार्थ सेवक अमूल्यचन्द्र विद्याभूपरण, डा० विभूतिभूषण दत्त, की याद हमेशा बनी रहेगी। डा० ए० प्रार० बनर्जी, डा० ए० आर० भट्टाचार्य,
लक्षाधिक दान देकर भी प्राप अपनी विज्ञापनडा० कालिदाम नाग आदि अनेक विद्वान जैन विषयों
बाजी से हमेशा दूर रहे। पाप हमेशा कृत्य को पर प्रापस जानकारी प्राप्त करते रहे।
प्रधानता देते थे, नाम को कभी चिन्ता नही करते प्रापका जैन विद्वानों से तो बहुत ही निकट का थे। पापने दान कभी प्रचार की भावना से नहीं सम्बन्ध रहता था। प्राप उनकी सेवा एवं सम्मान दिया था क्योंकि प्राप मानते थे कि 'परिग्रह पाप का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे। प्रापका है उस पाप का प्रायश्चित दान है किन्तु यह दान पं० नाथूराम जी प्रेमी, पण्डित जुगलकिशोर जी ख्याति लाभ पूजा के लिये नहीं होना चाहिए । मुख्तार अ० शीतलप्रसाद जी, बैरिस्टर चम्पत राय प्रायश्चित की दृष्टि अपने पाप का संशोधन अथवा जी. पण्डित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य, डा० हीरा- अपराध का परिमार्जन करके प्रात्म शुद्धि करने की लाल जी जैन, डा० ए० एन० उपाध्याय, प्रो० पोर होती है । चक्रवर्ती, पण्डित कैलाशचन्द जी, पण्डित चैनसुख
आप अनेक संस्थाओं में विभिन्न पदों पर रहे। दास जी न्यायतीर्थ प्रादि से नियमित एवं मधुर
आपका सभी प्रकार के वर्गों से नियमित सम्पर्क सम्पर्क रहता था ।
रहता था किन्तु मापने स्वाभिमान को हमेशा प्रमबाब जी जहाँ पुरातत्त्व, संस्कृति और शिक्षा के खता दी। किसी धनी या बड़े प्रावमी के सामने प्रेमी थे वहाँ दीन दुखियों के दुखों से जल्दी हो द्रवित कभी नहीं झुके, इन्हे ठकुर मुहाती कहना या सुनना हो जाते थे । धनी होते हुए भी वे उनके दुम्वों और पसन्द नहीं था, किन्तु साथ ही योग्य पात्रों के